पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४२२

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अनिमलय] [तीसरा खंड - -- और फर्रुखाबाद के नयाव को जिन कायर सैनिकों के कारण जल्द ही बहुत हानि झुठानी पड़ी। अस की राजधानी, अम का किला और अस की युद्धसाभया कुछ सब ब्रिटिशों के हाथ लगा और सन झांतिकारियों को गंगापार रुहेलखण्ड में हट जाना पड़ा। जिस गउचर में मिटिशों का कहर शन नादिरखॉ भी सुन के हाथ लगा । जिसी नादिरखों ने नानामाइट के अण्डे के नीचे कानपुर में कभी बार अंग्रेजों से सराहनीय सामना दिया था। अमे भयर शत्रु को पकडते ही असे फाँसी दिया गया। अिस नादियों ने अन्तिम क्षण में सारे हिंदवासियों को शपथ दी- सब अपनी तलवारें मैंयार कर अग्रेजों को जडमूल से अखाड़ने के लिये आगे बटो-और दम तोड़ दिया। अग वंदनीय देशभक्त की अन्तिम सॉस के साथ बाहर पड़ा यह तेजवा महामन था। ४ जनवारी १८५८ को जब विजयी कॅम्बेलने फतहगढ़ में प्रवेश किया, तब सारा दुआर और बनारस से मेरठ तक का सब टापू ब्रिटिगों के हाथ पड़ा था। अब निटिश सेना के सामने ममस्था थी, क चदाीका कौनसा कार्यक्रम बनाया जाय । अंग्रेजों का यह अनुमान, कि दोय की कांति की ज्वाला बुझा दी जाय तो अन्य स्थानों के भलो अपने आप शान हो जायेंगे, सौ टका झूठ निकला। दिली का पतन होते ती केवल आठ दिनों में 'विद्रोह' ठंढा पड जायगा की राजनिति-विज्ञोंने यह भविष्य कहा था; किन्तु दिल्ली के पतन के बाद क्रांति की बाढ हलकी न पड़ने से ये भी अनुमान और सब भविष्य झूठे साबित हुआ । क्यों कि, अब तक दिल्ली में बंद झांतिकारियों की असीम संख्या दिल्ली क पतन के बाद तूफान सेलाय की तरह देशभरमें हुरदंग मचाती फैल गये। बस्तखाँ की रुहेलों की सेना, वीरसिंग की निमचयाली सेना, तथा भिन्न भिन्न नेताओं के मातहत होनेवाली सेनाले देशभर में फैल गयीं और वी स्वाधीनता-सयाम जारी रखा। अक बार स्वयं दिल्ली में भी जनताने सिर ॲचा करने का जतन किया था। क्यों कि, लोगों में यह अफ. वाह फैल गयी थी कि कानपुर की विजय के बाद अंग्रेजों की कद में पडे

  • चार्लस बॉलकृत भिंडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ. २३२.