पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४२३

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अध्याय ७ वॉ] ३८१ [लखनझू का पतन बहादुरशाह को छुड़ाने स्वयं नानासाहब दिलीपर आ रहे है। अग्रेजोंने अपने अफसरों को यह चेतावनी दे रखी थी, कि. यदि नानासाहब आ ही जाय तो बूढे बादशाह को खरगोश की तरह गोली से मार दिया जाय । * दिल्ली के पतन के बाद तो क्रातिकारी और ही भडके । अब अन्हे पराजय की परवाह न थी । अनका शुरू शुरू का विजयोन्माद अब साफ ठंढा हो गया था। गहरी अदासीनता का भूत अनपर सवार था। अनके सामने अब अक विचार था-लडते रहो । अन का निरधार था कि या तो फिरंगी या स्वयं को जिस आर्य मूमिसे मिटा कर ही चैन लेंगे और जिस मन्तव्य की पूर्ति तक वे लडते रहेंगे । वे आपस में झगडते; कुछ जैसे भी थे जो अपना अल्लू सीधा करने के लिमे चाहे जो करने में हिचकिचाते न थे; फिर भी अिन में से अक भी व्यक्ति अंग्रेजों के विरुद्ध छेडे हुमे युद्ध को स्थगित करना पसंद न करता था। लडाभी में पकडे सिपाहियों से, फाँसी देने के पहले जब, पूछा जाता कि वे क्रातियुद्ध में क्यों शामिल हुमे ' तब वे छाती ठोक कर कहते, " यह तो हमारे श्वर्म की आज्ञा है कि फिरंगी को मार डाला जाय । अिस तरह दिल्ली के पतन के बाद स्वतंत्रता के भाव मर जाने के बदले और ही वेग के साथ भडक अठे । अिसी से दिली की पराजय का बदला लेने के लिअ अन्हों ने लखन और बरेली में झगडा चालू किया। जहाँ समूचा दोआब अंग्रेजों के हाथमें फिरसे आगया था, वहाँ अवध तथा रुहेलखण्ड प्रांत पूर्णतया क्रांतिकारियों के हाथ में ही न थे, बल्कि वहाँ सिंहासनों को फिरसे खडा कर स्वदेशी राजाओं का शासन भी जारी कर दिया गया था। मिसीसे कॅम्बेल के विचार में पहले रुहेलखङ को जीत कर फिर लखन को जाया जाय। लॉर्ड कानिग अिस बातपर जोर दे रहा था, कि अकबार क्रांति के तने को-लखन को-तोड दिया जाय तो,आसपास के छोटे स्थान आसानी से

  • चार्लस बॉल कृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ. १९४. x सं. ४५८ चार्लस बॉलकृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृष्ठ २४२.