पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४२७

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अध्याय ७ वॉ] ३८५ लखन का पतन से टकरा कर भी वह किला बना ही रहा । पाठक यह जानने को असुक होंगे, कि जिस किले में मानवबल कितना था । यहाँ केवल चौतीस लोगों का मेक दस्ता था। किन्तु स्वाधीनता के स्फूर्तिदायक ध्येयसे अभिभूत होने के कारण ही वे अितनी बडी सजी सेना से झूझने खडे हो गये थे । गोरखे बहुत जीवट से लड, किन्तु अन के प्रतिपक्षी अन से भी सौगुना जीवट से डटे रहे। स्वदेशभक्ति स्वदेशद्रोहियों से झूझ रही थी। अंबरपुरने अकथनीय भिडन्त में शत्रु के सात आदमी मार डाले और ४२ घायल किये । स्वयं अन से ३३ लडते लडते मर गये और बचा अक अन्ततक अपने स्थानपर डटा रहा और अस की लाश पर से होकर ही शत्रु किले में पग धरने पाया । दिल्ली और लखन भी जिस चीमडपन का परिचय न दे सके; अम्बरपुर सुप्त चीमडपन और . नीवट से लडा। * अम्बरपुर ले कर आसपास का प्रदेश अजाडते हुओ गोरखों और अग्रेजों की संयुक्त सेना आगे बढ रही थी और अस के पीछे पीछे जनरल फॅक्स भी सुलतानपुर के नजीम महम्मद हुसेन से तथा कमांडर बंदा हुसेन से सुलतानपुर, बदायूं और अन्य स्थानों में मुठभेडे करते हुसे अपर अवध की ओर बढ रहा था। अबतक की हारों से गयी साख को संवार ने तथा पूर्वअवध में पुराने कालसे बने राजकीय रुबाब को बनाय रखने के लि, लखन दरवार ने, जनरल फॅक्स का सामना करने के लिअ वाजिदअली शाह के समय के तोपखाना-ममुख गफूर बेग को भेज दिया। किन्तु ३ फरवरी को सुलतानपुर की लडाी में जनरल फॅक्स ने अप्से हरा दिया था और अंग्रेजों । का मार्ग निष्कंटक हुआ। और अब यह सारा सेना-संभार कम्बल की सहायता के लिये लखन को जा रहा था। फॅक्सने दौरारे के किले पर चढाीकी किन्तु अपनी

  • मैलेखनकृत भिंडियन म्यूटिनी खण्ड ४, पृ. ३२५. २५, .