पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४३३

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अध्याय ७ वॉ] ३९१ [लखनझू का पतन तोभी अंग्रेजी सेना का पीछा मौलाने नहीं छोड़ा। जनवरी १५ को, क्रांतिकारियों को पता चला, कि आलमबाग की सेना को रसद पहुंचाने को कानपुर से कुछ अंग्रेजी दस्ते चल पड़े हैं। चर्चा शुरू हुी कि जिस रसद को रास्ते ही में कैसे मारा जाय । किन्तु कोजी निर्णय न हो सका । निदान मौलवीने बीडा अठाया, 'शत्रु की रसद लूटकर मैं बिटिश सेना को चीर कर सीधा लखनझू पहुँच जागा ।' दृढनिश्चय से वह चला; अपनी हलचलों की शत्रु को तनिक भी खबर न मिले अितनी गुप्तता मे, कुछ लोगों के माथ वह कानपुर की ओर चला । किन्तु आसुटराम के हिंदी गुप्तचरोंने अिस बात का सुराग झुमे दे दिया; सो, असने कुछ दस्ते मौलवी की खबर लेने को भेज दिये । अपने साथियों को स्फूर्ति देने के लिअ अिन दस्तों से मुठभेड हुी तब वह सब के आगे रहा और बडी वीरता से लडा । घमासान में झुम की पीठ में गोली लगी और वह लडखडा कर गिर पड़ा। बहुत दिनों से अग्रेज असे पकड़ने की ताक में थे, किन्तु क्रांतिकारियों ने फुर्ती से असे डोली में रखा और लखनझू ले आये । अस के घायल होने के समाचार से हर अंक का मुख सूख गया। फिर भी, मौलवी का शुरू किया हुआ काम पूरा करना ही अम वरिके लिओ कृतज्ञता तथा आदर प्रकट करना है, यह जानकर पलभर भी न ठहरते हु जनवरी १७ को विदेही हनुमान नामक अंक ग्राह्मण वीरने अग्रेजी सेना पर जोरदार हमला किया। सबरे १० बज मे शाम के ६ बजे तक यह सूरमा हरावल में लड़ता रहा। किन्तु दुर्भाग्य से वह घायल होकर गिरफ्तार हुआ। विद्रोहियों में गडबडी पड़ी और वे भागने लगे। अिस हार से क्रांतिकारी सेना में आपसी मनमुटाव हुआ । नादान सिपाहियों ने लड़ने के पहले वेतन पाने का हठ किया। जिन को पेशगी वेतन दिया जा चुका था वे भी मैदान में जाने के पहले और पैसे मांगने लगे । फिर भी अस दृढ, साहसी और सुयोग्य बेगम ने अिस सत्र अव्यवस्था में भी राजप्रबन्ध जारी रखा था। और यही था उसके असाधारण मनोधैर्य का प्रमाण * खैर। अपयशों का अिस तरह तांता लगा

  • रसेल की डायरी का अद्धरण जिस विषय में बडा रोचक है; संदर्भ ४६ पढिये ।