पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४३४

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अग्निप्रलय ] [ तीसरा खड था और असी में बेगम के अर्थ मंत्री राजा बालकृष्णसिंह चल बसे किन्तु अितनी बड़ी और असंख्य विपत्तियों से भी यह बेगम पस्तहिम्मत न हुी । क्यों कि, अंग्रेजों के वहाँ रहने से मौत को अधिक पसद करनेवाले सूरमाओं की असके पास कभी न थी वे प्रतिदिन जमा होते और अंग्रेजों से बार . बार टकराते । जिन्ही धीरों में मौलवी अहमदशाह अक था । असकी चोट पूरी तरह ठीक भी न हो पायी थी, कि १५ फरवरी में वह फिर मैदानमें कूद पडा। कम्बेल के कानपुर से पहुंचने के पहले आअटराम का सफाया करनेपर वह तुला हुआ था । किन्तु विद्रोही सैनिकों में कायरता का रोग दिन दिन हदसे अधिक बढ़ने लगा था जिससे मौलवी का साइस अस दिन भी व्यर्थ हुआ और क्रांतिकारियों की हार हुी। फिर भी मौलवीने झगडा जारी रखा था। जिस पीर की शूरता से थकित होकर अितिहासकार होम्स अपने ग्रंथ में लिखता है, " यद्यपि बहुसंख्य क्रांतिकारी कायर थे, अनका नेता अवश्य अपनी निष्ठा तथा कर्तत्व से अपने ध्येय के लिओ अनथक चेष्टा करने और सेनानी का काम सम्हालने को सर्वथा सुयोग्य था। और यह. नेता था अहमदशाह; फैजाबाद का मौलवी । हार जीत की परवाह न करते हु अपने कर्तव्यपथ पर चलने के सिद्धान्त से अभिभूत सभी, वीरता के साथ लडते थे। ६० वी पलटन के सूबेदारने मालम मागस अंग्रेजों को आठ दिन के अंदर भगा देने की प्रतिज्ञा की और अपनी पूरी सामर्थ्य से वह झूझता रहा। अफ दिन बेगम स्वयं सब सेना के साथ मैदान में आ गयी थी। किन्तु अभागे लखनअ के भाग में विजय न बदी थी। और हो भी कैसे ? विजय, कुशलता और क्षमता की दासी है। क्रांतिकारी यदि अस क्षमता का परिचय देते, तो विजय अन के चरणों में होती। निदान कम्बेल आलमबागवाली सेना में जा पहुँचा। अंग्रेजोंने लखन जीतने के लिओ कोमी अपाय अठा न रखा था। किन्तु अनके लगातार हमलों से बाज न आकर, स्वराज्य के झण्डे के नीचे लखना अब तक मानपूर्वक

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