पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४३५

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अध्याय ७ वॉ] ३९३ . [लखनभू का पतन खडा था। अंग्रेजों ने अपनी पूरी शक्ति वहाँ केन्द्रित की थी, जिस से क्रांतिकारियों को भी डट कर सामना करने का प्रबंध करना पड़ा। अवध के सभी सूरमा वहाँ जमा हुमे थे। देहातों तथा खेतों खलिहानों में स्वदेशाभिमानी किसान अिस कठोर निर्धार से खडे थे-'या फिरंगियों को मार भगाोंगे या स्वयं अिस प्रयत्न में समाप्त हो जायेंगे।' चार्लस बॉल कहता है-" मधुमक्खियों के झुण्डों के समान पातभर से आवारों और स्वयंसेवकों के झुण्ड सशस्त्र होकर फिरंगियों से होनेवाली आखिरी कशमकश में झपट कर मरने के लिमे लखनसू आ रहे थे 1+ अस समय ३० सहस्र सिपाही और ५० सहस्र स्वयंसौनिक केवल लखनशू में जमा हुआ थे। जो क्रांतियुद्ध की शपथ से बाँधे हुओ थे, जिन्हों ने 'चपाती' खासी थी, जिन्हों ने 'रक्त कमल' की सुगध ली थी, सभी वे जो मिले अन शस्त्रों से लैस होकर, अपने देश और राजा के लिओ प्राणपन से लड़ने को लखनभू में जमा थे। कम से कम ८०,००० स्वयंसैनिक वहाँ होंगे ! * हर मार्ग, हर गली में खामियों बनायीं गयीं, टट्टियाँ खडी की गयीं। घर घर की तथा धुस की दीवारों में बंदूकों के छेद बनाये गये थे। दीवारों पर हर मोर्चेपर कहर क्रांतिकारियों के पहरे लगे थे। पूरब की ओर गौतमी नदी से नहरें खोदी गयीं और अनपर तोपों के पहरे लगाये गये । दिलखुश बाग से ठेठ केसरबाग तक तीन कतारों में घुसबन्दी + चार्लस बॉल कृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ. २४१.

  • क्रातिकारियों की संख्या के बारे में कल्पना शक्ति पर ही कैसे जोर दिया जाता था बिस के नमूने देखिये ! सर शेप अट का कहना है३० हजार सैनिक तथा ५० हजार स्वयंसैनिक थे। मॅलेसन अक लाख २१ हजार गिनाता है और प्रधान सेनापति कम्बल के साथ होनेवाला सिविल कमिशनर दो लाख की हामी भरता है-मिस गडबड-झाला को देख बेचारा होम्स चुप हो गया।