पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४३६

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बनी थी । स्वयं राजप्रसाद भी सशस्त्र सैनिकों तथा बडी बडी तोपों लैस था । मतलब ,उत्तर दिशा को छोड सभी ओर क्रांतिकारियों ने लखनऊ की रक्षा की सराइनीय सिद्धता कर रखी थी ।

कंबेलने , उत्तर की असुरक्षितता भॉप कर ठीक उसी ओर चढाओ शुरू की । अबतक हॉवलॉक , आउटराम था कंबेल केसीने उत्तर से चढाइ न की थी और वहाँ गौतमी नदी होने से क्रांतिकारियों ने भी विशेष प्रबंध न किया । संरक्षण - योज़ना की इस कडी से आउटराम ने पूरेपूर लाभ लिया । सो , उत्तर से हममा करने से और वहाँ प्रतिकार ढिला हो जाने से क्रांतिकारियों को हर मोर्चपर हार खानी पडी । ६ मार्च को ब्रिटिशोंने चढाइ का प्रारंभ किया । कंबेल की सेना ३० हज़ार तक बढ गयी थी , जिस से उत्तर और पूरब दोनों ओर वह चढाइ कर सका । कंबेम अपने व्यूह की रचना ऐसी की थी , जिस से लखनऊ से एक भी क्रांतिकारी जीवित न जा सके । अनपेक्षित ओर से चढाइ होनेसे क्रांतिकारियों की सभी योजनाएँ कट गयि , तभी ६ से १५ मार्च तक उन्होने डट कर युद्ध किया । इस अभागे लखनौ में सालभर यह तीसरी बार रक्त की नदियाँ बही थी । दिलखुशबाग दम रसूल , शहनजीफ , बेगम कोठी तथा अन्य स्थानोंपर , एक के बाद एक ममे करते हुए ब्रिटिश सैनिक आगे घुस रहे थे । दिनांक १० को क्रांतिकारियों की गोली से इडसन मारा - गया वही इडसन , जिसने शरण आये दिल्ली के निरपराध और निःशस्त्र राजपुत्रों को जानबूझ कर क्रूरता से काल किया था । इस पापी हत्यारे को मारकर लखनौ दिल्ली का प्रतिशोध लिया । दि १४ को अंग्रेज़ सेना ठेठ राजमहल में घुसी । मँलेसन उनकी इस विजय के विवरण में कहता हैं :- इस करारी तथा अपूर्व हार का यश तो खास कर सिक्खों तथा ९० वीं पैदल पलटन की ही करतूत है ।

किन्तू केसरबाग की अपूर्व विजय से फूल जाने घर भी कंबेल को आउटराम की ओर से जो समाचार मिले , उन से बडा दुख हुआ । क्यों कि , भले ही लखनौ का पतन हुआ-किन्तू सहस्रावधि क्रांतिकारि न शरण आये , युद्ध भी उन्होंने न रोका । किन्तू उलटे , अपने राजा तथा उपजाऊ मस्तिष्क