पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४३९

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अब अंग्रेज़ी प्रतिशोघ के एक दो उदाहरण सम्यता कीइ मात्रा की तुलना के हेतु पाठकों के सम्मुख रखते है।"राजमहल मे जब हत्याकाण्डने तूल पकडा, तब एक बालक एक बूढे को ले जा रहा था । उस बूढेने गोरे अफसर के पास जा कर जान बचाने की याचना की । इस दीन योचना का जवाब क्या मिला? उस अफसरने सीधे अपनी पिस्तौल उठायीं और उस बूढे की कनपीटपर चला दी ! फिर एक बार निशाना ताका , किन्तु वह चूक गया । फिर एक बार गोली चलायी , किन्तु उस गोली ने उस निष्पाप बालकहत्या करने से मूँह मोड लिया । हाँ चौथी बार , उस वीर को नश मिला और उस के पांव के पास खून से लथपथ वह बालक गिरकर मर गया । ससार को यह प्रसंग इस लिए मालूम हुआ कि उसे देखकर लिखनेवाला कोइ वहाँ नहीं था । ये क्रूर अत्याचार इत्ने असंख्य है ; कि जिनको क्रूर हत्या और दया पूर्णा हत्या की श्रेणी बनाने की बारी आयी थी । उपयुक्त हत्या बहुत कुछ दयापूर्ण बन जाता है उसका रूप सधारण तथा यों थाः-"अब भी कुछ सिपाही जीवित थे , उनको मार डालने की दया दिखायी गयी । किन्तू उनमें से एक को घर के बाहर रेतील मैदान मेम घसीट लाया गया । वहाँ गोरे उसे जलाने के लिए इंघन लाने गये थे । जब चिता तैयार हुइ तब उस अध्मरे सिपाही को इसमें भूना गया । यह सब कुछ देख रहा था ; किसीने उन्हे रोका नहीं ।खैर;जब वह अभागा, अघजला सिपाही चिता से बाहर लढखढा तब उस पैशाचिक करता ने कमाल कर दी | जब वह चिता से अलग हुआ मुने मौस की बोटिया खुली पडी हड्डी से लटक रही थी; फिर भी वह कुछ दूरी पर भागा | तब