पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४४

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ज्वालामुखी] . [प्रथम खड इटलीके उत्थानको उस ममय भलेही हार खानी पड़ी हो, फिर थी हम उसकी पवित्रतामें कोई कमी नहीं मानते।। जस्टिस मॅक्रार्थी कहता है "सच तो यह है, कि उत्तर भारतके कई विभागामें तथा उत्तरपच्छम प्रात में वहाँ के निवासियोंने अंग्रेजी हकूमत के विरुद्ध विद्रोह किया। इस विद्रोह में केवल सैनिक ही शामिल थे या यह केवल सेनाही में विद्रोह था, सो बात नहीं है। मालूम होना था कि इस विद्रोह में सेना का असतोप, राष्ट्रीय द्वेष और वहाँ के अग्रेजी राज्य के विरुद्ध धर्मनिष्ठ प्रतियोध का पागलपन, इन सब की मिलावट हो चुकी थी। देगी सैनिकों का हिस्सा भी इसमें था ही। ईसाई राजसत्ता के विरुद्ध लडने के लिए हिंदु मुसलमान भी आपसी वैर को भूलकर एक हुए थे। द्वेष और भय ही .इस महान् विद्रोह के कारण थे। चरबीवाले काडतूस के लिए अनबन तो इस समूचे ज्वालाग्राही अंबारपर पडी, बहाना बनी, चिनगारी थी। इस चिनगारी से यदि सोट न हुआ होता तो और किसी चिनगारीसे वह जाग उठता। "एक श्रण में मेरठ के सैनिकों को ध्येय, ध्वज और धुरीण मिल गये और झट सैनिक विद्रोह का स्वरूप एक क्रांतियुद्ध में पलट गया। प्रमात के सूरज की किरणोसे चमकती हुई जमुना के किनारे जब ये नातिकारी आ पहुँचे तत्र अनजाने उन्होंन इतिहास के महान् प्रसग को हस्तगत किया और उसी क्षण सैनिक विद्रोह्न धार्मिक एव राष्ट्रीय युद्ध का स्वरूप धारण किया चाल बॉल लिखता है, “ आखिर यह सैलाब किनारेपर आही धमका और उस से भारत की नैतिक भूमि पूरीतरह सिंच गई! उस समय तो ऐसा लगा कि इन उछलती लहरों के नीचे भारत में से समूचा युरोपीय जीवनही लोप हो जायगा और जब इस विद्रोह की भयकर - बाद उतर जायगी और फिरसे पहले के समान शान्ति हो जायगी • तब विदेशियों के दास्य से विमुक्त स्वाभिमानी स्वतंत्र भारत देगी नरेशों के स्वतंत्र राजदंड को ही अभिवादन करेगा! विद्रोहने अब

  • • * हिस्टरी ऑफ अवर ओन राईम्स खण्ड ३.