पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४४२

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अमिप्रलय ] [ तीसरा खंड जमा हुअ नहीं। हमारे गश्ती जत्थे शत्रुओं की सफों को चीर कर निकल जाते है, तो पीछे छोडा.हुआ प्रदेश ये बागी कब्जा कर लेते है। शत्रु की सख्या की कमी तुरन्त पूर जाती दिखायी पडती है और कहीं भी हमने पूरा सफाया किया हुआ दिखायी नहीं पडता, न डर ही । पैदा होता दीख पडता है।x डा. डफ ने सच्ची स्थिति बतानेवाला जो सत्यकथन किया है, असका भान अंग्रेजों को लगभग अन्त में हुआ। किन्तु इर मेक 'पांडे' अपने ध्येय को आरंभ से पहचानता था। अपना राज और देश के लिये जो खेत रहे वे तो अिन बातों को घोषित करते ही थे, अन की स्त्रियों ने भी वैसा ही निर्धार बताया । कुछ 'शूर' अंग्रेजों ने लखनअ के जनानखानेपर धावा बोला तब कुछ स्त्रियाँ अनके हाथ लगी। दरवाजे तोड कर अंदर घुसने पर भी गोरे सैनिकों ने वहाँ बंदूकों की बाढ दागी, जिस से कुछ औरतें नहीं ढेर हो गयौं । बची अन्हें बंदी बनाया गया। लखन को मटिया मेट किया गया। यह सम दृश्य देख कर अब क्रांतिकारी झट शरण आयेंगे जिस कल्पना से अंग्रेजो को बडा आनंद हुआ। अपने देशबंधुओं के अिस आनंदो न्माद में सहभागी बने कुछ अंग्रेज बंदिपाल भी अन बंदी रानियों से पूछते 'क्यों, अब तो बलवा कुचल दिया गया है न ? ' झट अत्तर मिलता 'कुचल ने की बात तो बहुत दूर है; हाँ अन्त में तुम्हारी इडिया नरम की जायेगी अवश्य । * - डॉ. डफ कृत आिंडियन रिबेलियन पृ. २४१-२४३.

  • नॅरोटिव्ह ऑफ दि सिंडियन म्यूटिनी पृ. ३३८ रसेल की डायरी, पृ. ४००.

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