पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४४५

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अध्याय ८ वॉ] ४०३ [कुँवरसिंह और अमरसिंह इमला कर जगदीशपुर का बदला लिया जाय। १८ मार्च १८५८ को बीबा के क्रातिकारी भी असे आ मिले और संयुक्त सेनाने अतरौलिया के किले के पास डेरा डाला। ___ अतरौलिया से अजीमगढ २५ मील है। खबर पाते ही ३०० पैदल सेना, कुछ रिसाला और दो तो साथ लेकर मिलमन अतरौलिया पर चढ आया। मार्च २२ को दोनों सेनाओं की मुठभेड हुमी । क्रांतिकारियों को अक क्षण भी फुरसद न देते हुमे मिलमन टूट पड़ा। तब क्रांतिकारी अस के सामने कहॉ तक टिक सकते 1 मिस धावे में अनकी पूरी हार हुी। तो कुंवरसिंह की सब शेखी धरी ही रही। अगली रातभर अितना फासला चलकर थकने परभी जिस अंग्रेज सेनाने अितना जोर दिखाया वह प्रशंसा के योग्य है। । । ब्रिटिश सैनिको! 'अपमा खून बहा कर तुमने यह विजय प्राप्त की है। मच्छा, तब मिस अंबराव की शीतल छाया में मोसे नाश्ता करो। सब ओर सशस्त्र पहरे बिठा कर नाश्ते की तैयारियां हुीं। भूके मुंह पहला ही कौर 'चबा रहे थे, शराब के जाम लबालब भरे थे-अितने में: धडाम ! साँय सॉय ! क्या है यह गडगडाहट--? मुंह का कौर गिर पडा, मुँह लगा जाम खिसक गया, नाश्ते की तय्यारियॉ चूर चूर हो गयीं, 'हाश' कर अभी रखे इथियार झुठा कर सुसज्ज होना पड़ा! कहीं कुंवरसिंह तो नहीं आया ! अरे हॉ, वरसिंहही ? मदोन्मत्त हाथी के गंडस्थल पर जिस तरह बनराज झपटता है असी तरह वह अंग्रेजों पर टूट पडा । मलेसन लिखता है सच्चे सेनानी को और क्या चाहिये था। सब कुछ मनचाहा असे मिल गया था। निश्चित विजय का मौका देख कुँवरसिह झपटा । ४ मिलिमनने 'धेरे से छटक, जाने के लिओ जोर से हमला करने का बहाना किया। किन्तु गन्ने के खेतों, आम के पेडों तथा मेडों से गोलियों की बौछारें सरसराती थीं। कुंवरसिंह के पास अिसबार मिलिमन से पाच छ: गुना सेना थीं। x मॅलेसन कृत अिंडियन ग्यूटिनी खण्ड ४, पृ. ३१९,