पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४४६

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अग्निमलय] [ तीसरा खंड मिलमम को चारों ओर से धेरै जाने का डर हुआ तब असने अपनी चढामी सभेट-सी ली। ब्रिटिश सेना अब, होश काफूर होने से, पीछे हटने लगी। बुक युद्ध का मना अब आया । फैले हु गोरों को गोली से अडाते हुअ तथा अग्रेनी दस्तों पर हमले करते हुझे कुंवर सिंह के सौनक मंडराना लगे। अिस तात्कालिक विजय से कुंवरसिंह बौखलाया नहीं। पीछे हटनेवाले शत्रुपर असने सब मिल कर जोरदार हमला नहीं किया। क्यों कि, अपने अनुयायियों की सच्ची क्षमता वह जानता था । आमने सामने डटकर लड़ने में अनके टिके रहने में संदेह था । अिसी से असने वृकयुद्ध ही अधिक पसंद किया, जिस प्रकार शत्रुसेना को खदेडते हुओ अतरौलियासे कोसिला तक पहुंचा दिया। किन्तु, कोसिला में अंग्रेजी सेना को सुरक्षित आसरा कहाँ मिलेगा ! असकी हार के समाचार अस के पहले पहुंच चुके थे। अिसी से वहाँ के हिंदी नौकर अनकी देखभाल में होनेवाले मवेशियों तथा अन्य सामग्री के साथ निकल गये थे। न कोमी नौकर, न रसद, भेडिया सी पीछे पड़ी कुंवरसिंह की सेना! सब सोचकर मिलिमनने चतुरता दिखायी और वह ठेठ आजमगढ तक पीछे हटा । यहाँ आकर असे आशा बंधी, क्यों कि अस के त्वर्य संदेश के अनुसार कर्नल डेम्स के मातहत गाजीपुर और बनारस से आये हु ताजादम ३५० सैनिकों की सहायता असे मिली थी। तब आजमगढ के अड्डे से, अपयुक्त सभी सजोगों को देख, अपने अपमान का बदला लेने का सब ने निश्चय किया। अस के अनुसार कुंवर सिंह से बदला लेने २८ मार्च को, कर्नल डेम्स आजमगढ से आगे बढा । किन्तु फिर अितिहास का पुनरावर्तन हुआ और नये सेनानी के आधिपत्य में बढे ताजा-दम सैनिकों के छक्के छूट गये और कर्नल साहन फिर वहीं पहुंचे जहाँसे आगे बढे थे। आजमगढ की घुसबन्दी का सहारा अन्हे लेना पडा । अब कुंवरसिंह पर चढ़ जाने की बात धरी रही । कुँवरसिंह ही ठेठ आजमगढ में घुसा, वहाँ गढी में आसरा लिये अंग्रेजों को भूखों मरा कर सफाया करने का काम कुछ लोगों को सौपकर वह विजयी वीर बनारसपर चढ़ गया।