पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४४९

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अध्याय ८ वॉ] ४०७ वरसिंह और अमरसिंह मन की सेना ठहरी, तब अन का आजमगढ से संबंध काट देना अस के लिस आसान था, किन्तु असने सामने से हमला करना पसंद किया और जब मिलमन पीछे हटने लगा तब असने जोरदार पीछा नहीं किया। मेक सुयोग्य सेनानी ने अन्हें और खदेडा होता। आजमगढ में आसरा लिये मिलमन की नाकाबदी के लिअ थोड़ी सेना कुँवरसिंहने रखनी चाहिये थी, शेष सैनिकों के साथ बनारस की ओर बहना चाहिये था; और मोर्चा बांधता तो लॉर्ड कर से मुकाबला करने में और सुविधा होनी । बादमें मालूम हुआ है, कि अस के पास लगभग १२००० फौज थी और अिन के मुकाबले में लॉर्ड कर के मातहत कुछ लोगों के बिना और सेना न थी। अस ने हाथ पाँच फैलाये होते तो सब कुछ असकी पहुँच में था; । हॉ, वह अवश्य सुयोग्य था; हो सकता है असने अिन सब मौकों को भापा भी होगा। किन्तु प्रसंग का परमेश्वर बइ था नहीं । असके पास अपने दस्तों के साथ जो आता; वह इरोक अपनी ही योजना पर इठ करता । परिणाम यह होता कि कुछ समझोता कर लेना पड़ता 11* __हॉ, तो लॉर्ड कर को केवल पूरी विजय से ही नहीं आजमगढ को सहायता पहुंचाने से भी हाथ धोना पड़ा। क्यों कि, अब तक आजमगढ क्रांतिकारियों ही के हाथ में था और भारापास के सब प्रदेश पर भी अन का बाच्छा भाव था । कुँवरसिंह में सेनापतित्व के जो अकृष्ट गुण थे; वैसे शागद ही किसी दूसरे में पाये जाते है । अपने सैनिकों के स्वभाव तथा क्षमता को पूरी तरह पहचाननेवाला ही सच्चा सेनापत्ति होता है, कुंवरसिंह में यह गुण था । अपने शत्रु का सख्याबल तथा युद्धशक्ति को जहाँ वह बिलकुल ठीक ताड लेता; वहाँ अपने अनुयायियों के गुण-अवगुणों को भी ठीक तरह नान लेता था। यही कारण था कि असने अंग्रेजों को आसरा देनेवाले क्लेि पर सधिा हमला न किया । असने सूक्ष्म निरीक्षणसे देखा था कि डर या आतंक, चाहे जिस कारण से हो, सिपाही किसी भी संकट का सामना करने को सिद्ध

  • मॅलेसन कृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड ४, पृ ३२६-३२७.