पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४५०

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rammmmm अनिमलय] [ तीसरा खंड होते हुआ भी अंग्रेजी संगीन से डरते थे। आरा और लखन के घेरों में यह बात सिद्ध हो चुकी थी । अग्रेज किले से बाहर जाने की सम्भावना न रहने देकर वह अपने मन में शत्रु का सत्यानाश करने की मेक अनोखी योजना बना रहा था । १८५७ की क्रांति में शामिल हुओ लोगों में दो प्रवृत्तियों के लोक स्पष्टतया दिखायी पडते थे । अक वे, जो समरांगण में काल के गाल में कूदने को सिद्ध थे और जो पूरे अनुशासन पर चलते हुआ डट कर लड़ते थे, चाहे सामने तोप होया तलनार ! दूसरे वे थे, जो देश पर बलि चढाने को अत्सुक होते हुझे भी अपनी अिच्छा पर अमल करने का धीरज नहीं रखते थे, जिस से डट कर लडने के ठीक समय पर पीछे पग धरते और पराजित हो जाते ! कुँवरसिंह ने पहले वर्ग के लोग चुनचुन कर भिकछे किये, जो रण में परख गये थे; अनके अलग दस्ते बनाये थे । चाहे जिस बाँके प्रसंग में काम आनेवाले विश्वास योग्य चुनिन्दे लोगों के दस्ते बम जाने पर, कुँवरसिंह ने अपनी साहसी तथा अनोखी योजना पर अमल करना तय किया और जिन दस्तों को तानू नदी के पुल पर मोर्चा लेने की आज्ञा दी। क्यों कि, अिसी छोटेसे पुलपर होकर, जनरल लुगार्ड आम आजमगढवालों को छुड़ाने के लिओ, जानेवाला था। लुगार्डने पहले तो यही माना, जो बिलकुल स्वाभाविक था, कि अिस पुलपर डटने का मतलब यही होगा कि आजम गढ शहरपर क्रांतिकारियों का कब्जा बना रहे । " किन्तु", मलेसन कहता. है " अस चतुर नेताने जो योजना बनायी थी असकी गहरामी का अंदाजा असके साथी भी न लगा सके । " यह गहरी चालभी, शत्रु के सागने यह दिखावा करने की, कि जानपर खेलकर आजमगढ की रक्षा की जा रही है । जिस तरह अंग्रेजों पूरा ध्यान अिस ओर आकर्षित होगा और अिसी में जब व्यस्त होंगे तब सीधे जगदीशपुर पर चढाी करें । सैनिकविद्या के अनुसार यह योजना अद्वितीय चतुरतावाली थी-आजमगढसे गाजीपुर, वहॉसे गंगा को तैर. कर पार होना, फिर जोरदार हमला कर जगदीशपुर फिरसे जीतना और सुस संकट को जानकर कि लुगार्ड पीछा करेगा और धोखा दी हुी आरा की अग्रेज सेना सामनेसे हमला करेगी ! अिसी महान साहसी योजना की पूर्ति के