पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४५२

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अग्निप्रलय] ४१० [ तीसरा खंड किया, फिर अनुशासनपूर्वक वे हट गये और, जैसा कि निश्चय था, कुंवरसिइ' के पास पहुंच गये। अकाओक पुलपर से प्रतिकार बंद हुआ देख लुगार्ड आगे घुस पडा. किन्तु देखता क्या है, कि वहाँ कोसी नहीं है। कुँवरसिंह की समूची सेना साफ निकल गया है, मानों, सब जादूसे पैदा हुी थी ओर असी के समान अब गायब ! जिस अदृश्य सेना की खोज के लिअ असने गोरे रिसाले.तथा घोडे. पर जानेवाली तोपों को भेज दिया। १२ मीलोंतक वे बेतहाशा दौडे; किन्तु व्यर्थ-और आगे बढे तब अन्इ पता चला, कि कुंवरसिंह जैसी सुरक्षित जगह में पहुंच गया था, जिस के भागनेवाले तथा पीछा करनेवाले कौन है जिसमें संदेह हो । शत्रु को देख क्रांतिकारी नहीं डरे, अलटे क्रांतिकारियों के दर्शन होते ही अंग्रेजी दस्तों का मस्तिष्क चकराने लगा। कुँवरसिंह की सेना अपनी नंगी तरवारे संवारे और अपनी तोपों के मुंह शत्र की ओर किये खडी मिली। जिस भिडन्त में होनेवाला अक अंग्रेज अफसर कहता है “तिने भारी बल के सामने अपने आप को सम्हाळने से अधिक हम क्या कर सकते थे? हमारे रिसाले ने तुरन्त हमला किया किन्तु वे अक चौकोर बनाकर हमें गालियाँ दे कर आगे बढ़ने को बारबार ललकारते रह ।" और जब सचमुच अंग्रेजों ने आगे बढने की धृष्टता की तब अनका औसा तो गरम स्वागत हुआ कि सैनिक तो क्या अफसर भी वहीं ढेर हो गये। कुंवरसिंह के चौकोर अभेद्य रहे और अंग्रेज बचाव पर मजबूर हुसे। फिर कुंवरसिह आगे बढ़ता गया और गंगा के पास पहुँचने लगा। अंग्रेजों की फजीहत के समाचार आजमगढ पहुँच । जनरल डगलस. और पांच छ: तोपें ले कर अनकी सहायता के लिअ दौड पडा। डगलस कुँवरसिंह की तलवार की पैनी धार को चख चुका था, जिस से वह सतर्क होकर' चक्कर काटकर नधी गॉवतक पहुंच गया। अिधर कुँवरसिंह भी स्वागत के लिओ सिद्ध था। अपनी पहुंच में अंग्रेज आये देख अपने मृत्यु-दल के वीरों को अनपर छोड़ दिया और शेषसेना के दो भाग कर दो भिन्न मार्गों से गंगा