पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४५८

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आनिमलय ] ४१६ [तीसरा खडः पैर फैला दिये, कुछ शत्रु के वारों के गाहक बने । डोलियों' को मार्ग में ही त्याग कर कहार भाग गये। थोडे में सब दूर कुहराम मचा हुआ था। घायल सैनिकों के बोझ से लदे सोलह हाथी भी थक गये। सेनापति ले प्रांद की छाती में गोली लगी और वह ढेर हो गया। पांच पांच, छ: छ: मील भागनेवाले सैनिकों में अपनी बंदूक अठानेभर शक्ति न रही थी। धूम के आदी सिक्खों ने सन से पहले हाथियोंपर चढ कर पलायन किया था और अबे गोरों का बाता कोभी न रहा । अक सौ नब्बे गोरों में से कुल ८० बच पाये। क्या ही कर काल! बुचडखाने के जानवरों की तरह, क्या, हे भगवान ! हम अस जंगल में लाये गये थे ?'४ । अिस तरह कुँवरसिंह की पूरी जीत हुी। 'शत्रु की तोपों के मुका' बले में अक भी तोप नहीं, और तिसपर भी शत्रु की यह हानि क्रांतिकारी कर सके । और तो और, अंग्रेजों की साथ लायीं तोपें भी अन्हों ने छीन ली ।* - किन्तु जिस भगदड में अक महत्त्वपूर्ण बात निखरती है, कि अस दिन के मतकों की संख्या में केवल नौही सिक्ख मारे गये दिखायी पडे। यह अस सीख का प्रमाण है, जो कुंवर सिंह अपने अनुयायियों को सदा दिया करता-"जिस तरह विदेशी शत्रु को दया दिखाने की मूल कभी न की जाय, असी तरह अपने भूले भाभी शत्रुकी ओरसे लडते हो तो भी, अन्हें जबतक बने, जानसे न, मारो।' विद्रोह की पहली झपटमें अंग्रेजों का साथ देनेवाले की बंगाली बाबुओं को कुँवरसिंह के लोगोंने पकडो था। अनको न केवल रिहा कर दिया गया, वरंच झुनकी अिच्छा के अनुसार अन्हें हाथियोपर चडा ‘कर पटना पहुँचाया गया । अंग्रेजी भाषा में लिखे सरकारी खत-पत्रों में आग लगाने का हठ जब क्रांतिकारियोने पकडा तब कुँवरसिंह ने अन्हें कडककर रोका; कहा-'अंग्रेजों को भारतसे भगा देनेपर, जिन कागजों के आधारपरही x चार्लस बॉल कृत भिंडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ. २८८.

  • अंग्रेजों को भिस पसग में बहुत बुरी और पूरी हार खानी पडी।" हाअिट कृत हिस्टरी ऑफ दि म्यूटिनी..