पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४५९

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मध्याय ८ वाँ] ४१७ कुँवरसिंह और अमेरसिंह लोगों के वंश-परंपरागत पारिसदारी के अधिकार तथा लोगों का आपसी पावने का सबूत ही इम नष्ट कर देंगे; जैसा कभी न करना चाहिये । जिस प्रकार, अपने शत्रुओं को पूरी तरह हरा कर, नयी विजयमाला को पहनकर और अपनी कीर्ति में चार चाँद लगा कर बूढे वीर राणा कुँवरसिंह का आगमन जगदीशपूर के राजमहलमें २३ अप्रैल का हुआ । किन्तु अस का यह अन्तिम आगमन है। अब कुंवरसिंह संसार के रंगमचपर फिरसे दिखायी न देगा। अपने अक हाथ से असने अपना दूसरा हाथ तोडा था; वह घातक सिद्ध हुआ और मिस नयी विजय से तीसरे दिन वह महान् राणा अपने राजमहल में स्वर्गबासी हुमा । स्वाधीनता का ध्वज शान से लहरा रहा था, तब स्वतंत्र और विजयी सिंहासन पर असने देश छोडी ! अस समय जगदीशपुर के राजमहल पर अग्रेजों का 'युनियन, जैक। नहीं, स्वदेश और स्वधर्म का विजयचिन्ह बना स्वाधीन राष्ट्र का सुवर्णध्वज वहाँ लहरा रहा था । स्वातंत्र्य ध्वज की शीतल छाया में असने अपनी लीला समाप्त की। कौनसा राजपूत जिस से बढ कर अज्ज्वल मृत्यु की अपेक्षा करेगा ? * भारत और अस पर हुमे अन्यायों का ठीक बदल' वह ले चुका था। हाथ लगे छोटे मोटे साधनों के बल पर युद्ध में शत्रु की थूथरी ही असने कुचल दी थी। अपने देश और धर्म का द्रोही बन कर नीच कर्म न किया; झुलटे मेक मानव, शक्तिभर, जो चेष्टा कर सकता है वह पूरी तरह कर मातृभूमि की बेडियों को तोड़ कर असने स्वतंत्र किया और आज तो समरांगण में स्वयं विजय देवीने विजयमाला अस के गले में पहनायी थी। हे राजपूत कुलावनस! x बगाल के राजपूत कान्त गुपानी कृत आर्थकीर्ति.

  • अितिहासकार होम्स अपने हिस्टरी ऑफ दि सीपॉय बॉर' में कहता है:--' वह बूढ़ा राजपूत, मितने सम्मानपूर्वक तथा वीरता से अंग्रेजों के लढ कर, २६ अप्रैल १८५८ को कालकवलित हो गया।'

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