पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४६४

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अग्निप्रलय] ४२२ [तीसरा खंड आगे बढ रही थी; कुँवरसिंह के स्थानपर आये भाजी अमरसिंह ने जरा भी चिंता न की । अस की विविध गतिविधियों का विवरण देने को यहाँ स्थान नहीं है, किन्तु मितनाभर कहना काफी है कि अमरसिंह ने जिस जिवट और चतुरता से व्यूह रचे और लडाजी जारी रखी, अस से लोग मानते थे कि कुँचरसिंह का देहावसान हुआ ही नहीं। निदान, अंग्रेजों ने हर अपाय से जिस लडामी का अन्त लाना तय किया। सात दिशाओं से सात सेनामें जगदीशपुर पर चढ़ आयीं । हर मार्ग रोका गया । राणा को मानो कटधारे में बंद किया जा रहा था । अन्त में, १७ अक्तूबर को अंग्रेजों ने जगदीशपुर को पूरी तरह घेर लिया। हाय. हाय! सिसी क्रूर कटघरे में वह स्वाधीनता-प्रेमी शेर बंद कर,मारा जायगा । निश्चित समय पर सब सेनाओं जगदीशपुर में घुस पड़ी और अस असहाय सिंह को घेर कर महार किया किन्तु धन्य हो अमरसिंह, धन्य ! अंग्रेजों ने प्रहार किया किन्तु कटघरे पर; खाली कटघरे पर; शेर तो कब का साफ वाहर हो गया था। ___ क्यों कि, ब्रिटिश व्यूह के निश्चय के अनुसार छः सेनाओं भिन्न भिन्न दिशाओं से नगर के भिन्न भिन्न भागोंपर चढ आयी थीं; सातवी सेना को आते पांच घंटे देरी हुभी। ठीक मौका ताडकर बिसी ओरसे अमरसिंह अपनी सेना के साथ साफ निकल गया। बिहारी क्रांतिकारियों को पीस डालने का अिरादा फक हो जाने से, छकटे हुमे क्रांतिकारियों का पीछा करने के लिओ रिसाला भेजा गया। हाथ घोकर पीछे पडे मिस रिसाले ने अमरसिंह को मेक क्षण का अवकाश न मिलने दिया। जिस समय अंग्रेजी सेना के पास नये किस्मकी राभिफलें थीं, जिन के सामने क्रांतिकारियों की तोडेदार बंदूकें बिलकुल निकम्मी सावित हुीं, जिस से अंग्रेजी सवारों को टालना असम्भव हो गया-फिरभी अमरसिंह के मुख से शरण का शब्द नहीं निकला। १९ अक्तूबर को अंग्रेजी सेना ने नोनदी गॉव में क्रांतिकारी सेना को पूरी तरह घेर लिया; ४०० से ३०० तो