पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५ अप्रिप्रलंप 1 ४२६ - [तीस्ता'खेदृ बिस समय बिजय प्राप्त काने के लिये दो वर्ति विशेष आवश्यक थीं। सेक, बिभूदेहात की सैना की अत्यंत गुप्तता रखना चाहिये थी; और दूतो, यह सेना सामने से शत्रु की पीटने तक पिलाई। रिसाला हमदा न को । जेसा कि निश्चित था, ८ गौक्वीने अपने घुडास्वारों कौ गुप्त मार्गसे स्वाना किया और स्वयं पैदल सेना के साथ बुत देहात में बात लगा कर बैठ गया । दूसँर दिनु सबेरे अंयेज सेनानी नदी क्रिनरि आ पहूँचा 1 अब केवल आध घंटे की' देरी थी और बीज चक्की के दो पायें में पिस का रह जति किंतु यही आध घंटा मौलवी के लिये घातक वन गया । कुस्ती मोजना के तीन तेरह शे गंधे; क्यों कि, चुस्त के घुडसवसिं ने बेवकूफी की ड्डान्हीं ने भुप्तरुप से जा कर दौयैजै। की पिछादी पर वेक सोवै पकी जगह हथिया ली थी; और शत्रु पा टूट पडने का नौका देख दि थे; यह सव ३ठीक हआ । किंतु, मौलवी की स्पष्ट आज्ञा को तोड कर सामने दिखवैवाली कुछ असैरा'सेत तोपों पर कब्जा करने के लिझे आवें दले की आगे बढने की आज्ञा कुस के अधिकारीने दौ! क्रांतिकारियों ने कुछ तेंपि हथिया लंट्वि किंन्तु लिस से शत्रु कै। कुन का पता लग गया, अंमेजी ने कुन पर प्रतिचदाऔ की और तेंर्पिं छीन ली । किंतु क्ति चटना से मौलवी का किया कराया मूल में पिल गया ५ पिछादी पर कांतिकार्रियों की गतिविधि देख बंधेज सावधान दो गये और दोनों बोर के प्रतिकार के लिये सिद्ध हुवे । अपने घुडसवसिं की' धिसबैस्कूकौ से मौलवी की कुस देशन कें। छोड कर अन्य दुपाय सोचना पडा 1 जब्र शेप वैट क्रांतिकारियों को अवधचे चाहर खदेड़ने