पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४७०

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आँहँम्मलंय ] ४२८ [ हींमरा खेद तव अपनी क्तिय का मरुत्त वट चनु कर बताने के तिठेदृ शत्रु की नंस्वा फुला कर कहने के दिना दोशी चारा न था । ने भी सिम गद ३९ हाँहैँ हाँ पिला ही 1 बेदी ने किं। गोरा क्यों वषपि दृब्वबै दे का’ रहा था कि दृदृदृक्लदृदृह्र की हैना २५० ट्वे अधिक नहरेंहै, दुऱत्त की आँखों देखी वान हैं, तत्र दुदृसे बिम्बास्याती बताने ३ क्षेटेज्ञ न दृहैचकिचयि 1 किने के कच्चे परदोटे की ओरतै चढाये: करने के बदले गई ठे नद 'मै ने प्रबल तया सुरक्षित क्तिद्रवेईरे पर सामने से हमला किया । टुरन्त सामने की झादैठ ३1 किंढेवालै'रुने गोंलिये। की बौछरेंरै की 1 शत्रु उब खाओ के पाल आया तव तो गोदृठेर्यों की धुआँधार वर्षों होंने लगी 1 आगे बैट १५८ सैनिकों है ३४६ मेरि तो केक साथ नर गमे । सिस तरह किले की मइल फला है हैक्सिहै तीरेड़ ग्रा’तेकार दो देख र्वालपौल ने हिले की क्ली और से न्वडाअँरु कहना लय किया 1 बिटिश तेपि धदृधडबि लगी' । किंतु हुझेग्य है कुन के गीले किठेप्रै पडने के बदले ठीक पास लेनेवाली बिटिश केना ही में गिरने क्नो 1 शहु के साथ लदृनेवाले कवी बीर सेनानी अब तक हैं। चुके लेगे; किन्तु वेकहीं समय, शत्रु क्या मित्र के साथ समान कृहृदृलत्तद्दसे क्या वीरता से टदृनेवाले भिल महान्हैडनापद्वि