पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४७२

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कि वरेली में किसी तरह लडाअी न चलायी जाय । व्रेरेलीसे निकलकर, प्रांतभर में फैल,झूझने का अुन का अिरादा था,वरेली खाली करने की पूरी सिद्धता हो चुकी थी; अब केवल चल पडने की आज्ञा की राह थी । क्रिन्तु वहाँ के शूर रुहेलों ने इठ किया,कि जत्र नचि शत्रु फिरंगी व्ररली के अितना नजदीक आ पहुँचा है, तब अुसके लहू का घूट पीये बिना वरेली नहीं छोडेंगे । क्यों कि, वे सिद्ध कर देना चाहते थे, कि राष्टीय स्वतंत्रता के पवित्र् द्येय के लिअे खून बहाने को वे क्तिने अुस्तुक् और सिद्ध थे। व्ररेली को घेरने के अिरादे से आयी अंग्रेजी सेना बहुतही प्रचल थी । अ़स के पास बढिया तोपखाना दो कर अच्छी तेपें भी काफी थीं । अुसका रिसाला तथा पैदल सेना दोनों बहुत मजे हुये तथा शस्रास्त्रों से सुसज्ज थे। और अिस सेना का नेतृत्व स्वयं कैम्बेछ जैसा समर्थ सेनानी कर रहा था। अैसी सेना के आगे खान त्रहादुर खाँ की तेणों की अेक न चली। निदान, ५ मअी-को क्रांतिकारियों ने अपनी तलवारें थीं अुन क्रांतिकारी हुतात्माओं की, जो विजय की आशा न होने की बात स्पष्ट जान कर-यहाँ तक कि, पराजय के लिये तैयार हो कर-मेैदान से न इटकर अपने परम पवित्र ध्येय पर दुर्दम्य तथा अटल निष्टा रख कर, हँसते हँसते मौत को गले लगाने के लिये अुठायी थीं। पवित्र साधना के लिये पतन ही स्वर्गद्वार खोलने की कुँजी है। अुन की अटल श्रद्धा भी, स्वतंत्रता का ध्येय भी अुन अदात्त ध्येयों शामिल हैं जिनके लिये मानव प्राणोंपर खेल जाय । अपनी त्तलवरों सँवार कर ये घासी अंग्रेजियों पर टूट पडे । अितनी फुर्ती और निडरता से अुन्हों ने हमाला किया कि, जिस दवच से ब्रिटीश सैनैक भी अेक बार विचलित हो कर गडबडाये। ४२ वी शाअिलंडर पलटन ने प्रतिकार क प्रयत्न किय, किन्तु जमदूत के समान श्किराल भासनेवाले घासियों ने जोरदार भारकाट की और अुनमें से कुछ त्रिटिशों की पिछाडी तक पहुँच गये । अुन वीरोंसे अेक भी लौट नहीं आया; ब्रिटिश सेना की गाजर-मूली काटते हुअे आये थे। वे लडते लडते खेत रहे किन्तु भूलकर भी शरण या पीछेइट की कल्पना अुन्हें छू तक न गयी ।