पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४७३

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अध्याय ९ वॉ ४३१ [मालवी महमदशाह ]

अेक ही वीर था जो अंग्रेजी 'सगीन का शिकार न हुआ ।हैं ? यह कैसे ? ठहरो। स्वयं बिटिशौं का सेनानी यहॉ आ रहा है । देखो, अबतक लाशों-के ढेरर में मतक का बहाना कर पडा वीरवर अुस सेनापतिका गला घोंटने को झपट पड़ा! हाय, हाय !पास खडे अेक 'राजनिष्ठ'सिक्ख ने अुसी समय अुस बीर पर वार किया और वह सचमुच मृतक बन गया।*

 ससार के अितिहास अमर पराक्रम से अंकित हुतात्मता के जो अिने 

गिने प्रसग मिलते अुनमैं ओसा महान्, दिव्य और अुद्रात्त प्रसंग शायद ही पाया जायगा !!

  सात मअी को, अुन्हे पूरी तरह घेरने कै बिटिशों के सभी प्रयत्नों को विफल बनाकर सभी क्रांतिकारी, अपने नेता खत्नबहादुरखॉ के समेत, बरेली से कुराल से छढक गये और खाली पडी रुहेलखण्ड की राजधानी' पर

अगे्ज बहादुरों ने कच्चा जमा लिया।

  खानबहादुरवाँ के सहीसलामत छटक जाने से विषण्ण-मन सेंनापाति

कैम्बेल, बरेलीपर दखल होने से खुश, अपने खेमेमें बैठा था; तभी अेकाअेक चिछाछ्हट हुअी 'मौलवी, मौलवी' !

  शाहजहाँपुर मै मोलवी अेक बडी साहसी और अति अटूमुत योजना बना रहा था । मात्र लडाअी टालने के हेतु से नानासाहब और मोलवी

अहमदशाह शाहजहॉपुर से यों ही कँम्बेल को झॉसा देकर थोडे ही छटक गये थे ? शहर छोडने के पहले ही वहॉ के सरकारी कार्थालयों तथा अुघानों को अुजाडने की आज्ञा दे ही थी। अुन चतुर नेताओंने ठीक भाँप लिया था, कि शाहजहाँपुर में थोडे सैनिक रख कर कँम्बेल बरेली पहुँचते ही अुस के पाति शोघ के लिअे मौलवी शाहजपुर पर टूट पडे और वहाँ के सैनिकों का सफाया कर शहर लूटे । अंदाजा भिलकुल ठीक निकला। चार तोपें और कुछ

 *रसेल की डायरी