पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४७४

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अग्निमलय ] ४३२ [तीसरा खंड सैनिक वहाँ छोड कॅम्बेल बरेली चला गया था। सभी घुसबन्दी को पहले ही नानासाहब थुनाह चुके थे, जिस से अंग्रेजी सेना को खुली जगह में डेरा डालना पड़ा था.। ममी ४ को अहमदशाइ शाइजहाँपुर पर चढ गया । अस का शत्र अस समय सुरक्षा के भ्रम में वेखवर पडा था। किन्तु आधी रात में किसी के मूर्ख हठ से मौलवी की सेना वहाँ से चार मील दूरीपर अटक गयी । और मौलवी की योजना टाँय टाँय फिस हो गयी । क्यों कि, अंग्रेजों के अक हिंदी गुप्तचरने अिस गतिविधि पर पूरी नजर रख कर बढी चतुरता से सब समाचार शाइनहाँपुर के कर्नल हेलको सुना दिये । देशद्रोही हिंदी खुपिया से खबर मिलतेही ब्रिटिश सेनानीने अपने सैनिकों को नयी बनसी गढी में भेज दिया। अपना शिकार सावधान हो कर सुसंरक्षित ओट में पहुंच गया है यह देखकर भी मौलवीने चढाश्री जारी रखी। शहर तथा किला हथिया कर वहाँ के लोगों से अपने खर्च के लिअ कर भी जमा किया। मॅलेसन भी मौलवी का अनुमोदन करते हु लिखता है:-. 'मौलवी ने वही बरताव किया जो युरोप की युद्धनीति में किया जाता है।' पर जिस से क्या होता है ? स्वातंत्र्य-समर म समचे राष्ट्र की पराधीनता आर अपमान को,अपने उष्ण रक्त को बहा कर धो डालने के लिओ जब कुछ अिने गिने महान व्यक्ति आगे बढ़ते हैं, तब तो अिन देशभक्त वीरों की सहायता स्वयंस्फूर्ति तथा स्वेच्छा से करने के लिओ आगे बढना जनता का कर्तव्य होता है। शहर को हथियाने पर मौलवीने वहाँ आठ तो ला रखी और अंग्रेजों की गढी पर दागी। ७ ममी को यह खबर जब कॅम्बेल को मिली तब पहले तो वह चकित हुआ, किन्तु जैसे तो असे प्रसन्नताही हुभी । क्यों कि पहले मौलवी के छटक जाने से मौका हाथ से गॅवाया था तभी से असके मन में कसक थी। अब मौलवी अपनी ही करतूत से असे वह मौका दे रहा था। तब पूरी तरह प्रबंध कर कम्बेल मौलवी को फॉसने चला । अब मौलवी के छटक जाने का कोली चारा न रहा ! मी ११ से तीन दिनों तक घमासान और अविराम युद्ध मचा रहा। किसी तरह मौलवी का छुटकारा असम्भव बन गया । तब अिस अत्यंत जनप्रिय और महान् साहसी देशभक्त को बचाने