पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ९ वॉ] ५३३ [मौलवी अहमदशाइ के लिो क्रांतिकारी नेता चारों ओर से अपनी अपनी सेनाओं के साथ जमा हुओ । अवध की बेगम हजरत महल, महमदी नरेश मय्यनसाहब, दिल्ली के शाहजादा फीरोजशाए, कानपुर से नानासाहब-ये सब नेता १५ ममी के पहले शाहजहाँपुर में सकट में फंसे स्वाधीनता के झण्डे की रक्षा को दौड पडे । अिस प्रकार सहायता पाकर दिनरात शत्रुसे झूझते हु असे हैरान कर, कॅम्ब्रेल का व्यूह तोड कर, शाहजहाँपुर से मौलवी निकल गया। अिधर कातिकारियों का प्रतिकार टूट जाने की बात सुनकर, मौलवी को यो पकड लेंगे जिस विश्वास से, कॅम्बेल ने अपनी सेना को बॉट कर भिन्न भिन्न दिशाओं में पहले ही भेज दिया था। किन्तु अपने शत्रु की माशाओं तथा योजनाओं की धज्जियाँ अडा कर यह मौलवी छटक गया; किन्तु कहाँ? वह अवध ही में घुसा । वही अवध ! जहाँ सालभर की अनथक चेष्टा तथा रक्तपात, और अत्यंत कष्ट से अंग्रेज क्रांतिकारियों से मुक्त करने में सफल हो थे। कम्बल ने अवध पर दखल किया था और मौलवीने रुहेलखण्ड पर! अब सर कम्जेल रुहेलखण्ड जीतता है तो यह मौलवी चक्कर काट कर फिर से अवध को इथिथाता है! जिस प्रकार दृढ तथा चीमडपन से प्रतिकार कर मौलवीने विदेशी शत्रु की नाकों दम कर दिया । और यह लडाभी, अपने करोडों भाभियों तथा राष्ट्र की शान के लिअ असने लडी। मौलवी की अिस भयंकर गतिविधि को रोक अिस झगडे का अन्त कर देने के विषय में अंग्रेजी शासन निराश होने लगा। जिस दशा में है कोसी अनकी सहायता करनेवाला ? मिस क्रांतिनेता को काटने की हिम्मत किस की तलवार में है, जब कि कॅम्बेल की तलवार असके सामने मोथरी पड गयी है ? अब अिस मौलवी को किस रामबाण अपाय से मारा जाय ? रामबाण उपाय ! अंग्रेजो ! तुम चिता न करो। क्या आजतक कभी बार हिंदुस्थान की ब्रिटिश सत्ता के शत्रुओं को नष्ट, करने में अंग्रेजी खड्ग २८