पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४७६

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अनिमलय ] . -४३४ [तीसरा खंड अिसी तरह लाचार और अयशस्वी नहीं हुआ है ! वस तो, कठिन तथा निराशा के प्रसंगों मे जो बचा सकते थे और जिन्हों ने बचाया वे ही अब अिंग्लैड को बचाने के लिअ आगे आ जायेंगे । हिंदुस्थान की जिस ध्येयमूर्ति को काट डालने के लिओ अंग्रेजों की तलवार मोथरी पड़ी है, वहाँ विश्वासघात के खंजर को काम सफल करने दो! अवध में फिरसे आ जाने पर फिरंगी का अधिक से अधिक तथा हठीला प्रतिकार करने का मौलवी ने निश्चय किया। अस ने सोचा, कि यह जो तूफान अब अवध में बरपानेवाला था, जिस से अंग्रेजों को निकाल बाहर कर सकेगा, यदि पोवेन नरेश असकी छोटीसी सेना मौलवी को सौंप देगा, तो असमें सफल होगा। अिस हेतुसे पोवेन नरेश के पास, बेगम की मुद्रा से अकित, पत्र भेजा । यह मामूलो राजा मोटा और स्थूल बदनवाला, काम में सुस्त और मंद, बुद्धिसे कुंद और बुद्ध, स्वातंत्र्य समर और समरांगण का अल्लेख पढते ही चौंक पडा। किन्तु जितना कायर अतना ही कपटी होने से असने अत्तर में लिखा कि वह मौलवी साहबसे स्वयं मिलना चाहता है। जिस निमंत्रण के अनुसार मौलवी असे मिलने चला | वहाँ पहुंचने पर अस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब असने देखा कि गांव के सब दरवाजे बंद है और परकोटे पर सशस्त्र सैनिक अप्त की रक्षा कर रहे हैं, राजा जगन्नाथसिंह अन के बीच खडा है और अस का भाभी अस के बगल में । यद्यपि मौलवी अिस का मतलब ताड गया, फिर भी निड. रता से अस ने राजासे चर्चा शुरू की । अस निर्भीक हृदय की, जिस ने फिरंगी को देशनिकाला देने या स्वयं शहीद का मुकुट पहने की प्रतिज्ञा की थी, वक्तता का असर परकोटे पर खडे अस नीच के मन पर क्यों कर होता ? जंब यह स्पष्ट हो गण कि वह कमीना खुशी से दरवाजा नहीं खोलेगा तब मौलवीने अपने महावत को आज्ञा दी कि जिस हाथीपर वह बैठा था अस की धडक से द्वार तुडवाया जाय । और मेक धडक, और द्वार टूटने को था। किन्तु राजा के भाभीने निशाना ताका और महान् मौलवी अहमदशाह अस नीच कायर के शर्थों मारा गया । वह स्थूल राना और अस का भागी तुरन्त दरवाजे के बाहर