पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४७८

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अमिप्रलय] १३६ . . [ तीसरा खंड जिस में मिस अध्याय में वर्णित के जोड का अकाट्य प्रमाण दूसरा नहीं है। ...सर कॅम्बेल को रण मैदान में दो बार मुंह की खिलाने की शेखी मौलवी के बिना कोसी नहीं कर सकता...अिस तरह फैजाबादवाले मौलवी अहमद .अल्ला की मत्यु हुी। अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता अन्यायसे छिन जाने पर योजनापूर्वक स्वाधीनता के लिओ लडनेवाला-देशभक्त की यह परिभाषा ठीक हो तो- मौलवी अहमदशाह निस्संदेह सच्चा देशभक्त था। असने अपनी तलवार किसी की अकारण हत्यासे रंगने न दी थी; असने हत्यारे पर दया न की। वह वीरता से लडा; सभ्यता और जीवट से समरांगण में अन विदेशियोंसे लडा, जिन्होंने अस के देश को कब्जा कर लिया था। संसार के सभी राष्ट्र के सच्चे, वीर असकी स्मृति का सम्मान करेंगे, औसी अस की योग्यता थी। *

  • मलेसन कृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड ४, पृ. ३८१. '