पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४८५

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अध्याय १० वा.] ४४३ [रानी लक्ष्मीबानी झॉसी पर चढाभी करने में अंग्रेजी राज का हित था, तब हिंदुस्थान के सबसे बडे दो अधिकारियों की आज्ञा न मानने का पूरा दायित्व सर रॉबर्ट हॅमिल्टनने अपने सिर ले लिया और अपने राष्ट्र के अच्च हित का काम करने से गर्वित ब्रिटिश सेना झॉसी की ओर बढी; असे विजय की आशा थी। किन्तु झाँसी की भूमि पर पग धरते ही असे बहुत कष्ट अवाने पडे । क्यों कि, अचरज के साथ यह मालूम हुआ कि रानी की आज्ञा से झाँसी के आसपास का सभी प्रदेश सिंस लिओ अजाड दिया गया था, कि शत्रु को किसी प्रकार की रसद नमिले । खेत में अनाज का सेक भी भुट्टा नहीं, घास का तिनका नहीं, छाया के लिये पेड भी नहीं ! नेदर्लडस् के विलियम ऑफ ऑरेंज ने, स्पेनवाले शत्रु के हाथ में देश जाने की अपेक्षा, सागर के पानी को अंदर लेना पसंद किया था अिधर झॉसीवाली रानीने असी नीति का सहारा लिया। . अब भी वही गर्जन रानी की ध्वनि में है, क्रोध से अस की आँखों से चिनगारियाँ निकल रही है। बानापुर नरेश मर्दानसिंह, क्रोध भरा शाहगढ का राजा, जान हथेलीपर लिखे शूर ठाकुर, बुदेलखण्ड के सरदार-देश की स्वाधीनता के लिये डटे अनके अनुयायी-यह सभी ज्वालाग्राही सामग्री झॉसी में क्रोध से जल रही थी। क्रोध की लपटें 'जरीपटका' (राजध्वज) तक ॲची अठती है-और अिन सब में निखरती है वह तेज की मूर्ती ! अपर्युक्त सभी लोगों की शक्ति तथा किलाबंदियों, ज्वालाओं तथा जरीपटका का बल अस अक देवी में केन्द्रित है। वह सब की स्फूर्ति-देवता है। रानी में चेतनाओंने आसरा लिया है। वह स्वराज की तेजस्वी प्रत्यक्ष मूर्ति है, स्वाधीनता की केन्द्रकल्पना है। अस का अवतार है। ___सब भूमि अनडी हुी पडी है फिर भी अग्रेज सेना झॉसी की ओर आगे बढी । बलिहारी है शिंदे तथा टेहरी नरेश की-जिन्हों ने 'अग्रेज निष्ठा' के कारण सारी सेना को अिस लडाी में घास, आंधन और फलमेवे पर्याप्ततासे अधिक दे कर, सहायता की। * जब की शिंदे

  • मलेसन कृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड ५; पृ. ११०.