पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अग्निप्रलय] ४४४ . [ तीसरा खंड और टिहरी नरेश फिरंगी की सहायता कर रहे है, विश्वासघात और उद्दण्डता का बाजार गर्म है। अपनों और परायों ने धोखा दिया है। अब तुम्हारे लिअ विजय की कोमी आशा नहीं। तो फिर अंग्रेजों की शरण लेकर सर्वनाश से क्यों नहीं बचती ! क्या शरण ! और झॉसीवाली रानी के लिये ! मंत्री लक्ष्मणराव, मोरोपंत तांबे, शूर ठाकुरो और सरदारो तुम सब स्वाधीनता 'के वीर हो; तुम शरण मांगो तो बच जाओगे, लडोगे तो मर जाओगे। क्या पसद करते हो ? झाँसी ने सहस्त्रों मुखों से दृढता से गीता के शब्दों में अत्तर दिया- 'जातस्य हि ध्रुवो मुत्युः और सम्भावितस्य चाऽकीतिमरणादतिरिच्यतेजो जन्म पाता है वह अवश्य मरता है, तो फिर व्यर्थ में कीर्ति को कलंकित क्यों किया जाय ? सो, देश की प्रतिष्ठा के लिये अंग्रेजों से भिडना तय हुआ। तब झाँसी और झाँसी की लक्ष्मी ' दिनरात युद्ध की सिद्धता में लगी रहीं। वीर अस की सेना में काफी थे; युद्ध की शिक्षा पाये हमे बहुत थोडे थे । अनुशासन का अभाव स्पष्ट दीख पडता था। फिर भी स्वयं रानी ने सब सेना का नेतृत्व , किया । हर बुर्ज तथा द्वार पर, वह घूमती ही नजर आती। तोपों की कुर्सियाँ बनने और अन्हों मोर्चेपर लगाने की जगह पर वह स्वयं अपस्थित थी। चतुर तोपचियों का चुनाव करने में वह मगन थी। और निराश हृदयों में भी वीरता के प्राण फूंकती हुयी वह हर जगह दिखायी देती थी। झांसी के पण्डित देश की स्वाधीनता के लिये प्रार्थनाओं चला रहे थे। वहाँ के मंदिरों ने रण में जानेवाले सैनिकों को आशीर्वाद दिये और घायल हो जाने पर अन की शुश्रुषा की । वहाँ के कारीगर गोलाबारूद और युद्ध की अन्य आवश्यक चीजें बनाने में व्यस्त थे। झॉसीवालों ने तोपों के काम में आदमी दिये, बदूकें भरने का काम किया, और तलवारें पैनी की। वहाँ की स्त्रियों ने गोलाबारूद पहुँचायी, तोपों की कुसियों बनायीं, रसद पहुँचायी।* २३ की

  • स्त्रियाँ तोपखाने में तथा गोलाबारूद पहुँचाने आदि कामों में व्यस्त दिखायी दी-सर ह्यू रोज,