पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४८७

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अध्याय १० वॉ] ४४५ [रानी लक्ष्मीबासी रातको, शहरभर में युद्ध के नगाडे बजने लगे और किले से बीच में मशालें चमकती दिखायी पड़ीं। प्रहरियों ने कुछ गोलियाँ भी चलायीं । २४ का सबेरा हुआ । अब तनिक भी देरी नहीं होनी चाहिये ! 'घनगर्ज' तोप ने अपना काम शुरू किया । अस की गर्जन बडी भयंकर थी। झाँसी के घेरे की प्रारंभिक दशा का 'ऑखों देखा' विवरण हम नीचे देते हैं। २५ दिमाक से बराबर भिडन्त शुरू हुभी। अंग्रेजी तोपों दिन रात आग बरसाती थीं । रातमें किले और शहर में गोले पड़ने लगे। दृश्य भयंकर था। पचास या साठ पौंड का गोला टेनिस की गेंद की तरह, किन्तु अंगार के समान, दीख पड़ता था। दिनमें धूप के कारण ये गोले स्पष्ट न दिखते थे किन्तु रातमें वे खूब चमकते और रात को भयानक बना देते । २६ के दोपहर में दक्षिणद्वार की हमारी तोपें अंग्रेजों ने निकम्मी कर दी और अक भी व्यक्ति वहाँ न टिक पाता था। सब गलितधैर्य हो गये थे। तब पश्चिमदार के तोपचीने असी की तोप का मुंह घुमाया और अंग्रेजों पर गोले फेंकने लगा। तीसरे गोले से अंग्रेजों का बढिया तोपची मारा गया और तोप बेकार हुी। जिस से रानी बहुत प्रसन्न हुी और अपने अस तोपची को चाँदी का कडा अिनाम में दे दिया। अस का नाम था गुलाम गोशखान । पहले, नत्थे खाँ के साथ हुसे युद्ध में भी असने जैसाही काम किया था।" “पाँचवें या छठवें दिन असी तरह युद्ध हुआ। चार पाँच घंटों तक रानी की तोपोंने अच्छा काम किया और अंग्रेजों की भारी हानि हुी। अन की बहुत तोपें भी कुछ समय के लिओ बंद हुीं। फिर अग्रेजी तोपों की मार भीषण हुश्री और रानी की तोपें बंद पड़ने लगी लोगों का दिल बैठने लगा। सातवें दिन, सूर्यास्त के समय, बाओं की तोप निकम्मी हुश्री। कोभी वहाँ खडा नहीं रह सकता था। अंग्रेजों के गोलों से मुंडेर ढह पडी। किन्तु रात में कंबलों में छिपकर ग्यारह राज वहाँ लाये गये और तडके के पहले से मुंडेर का काम पूरा हो गया। अग्रेजोने सबेरे दाँतों तले अँगली दबायी, जब अन्होंने देखा कि छेद ठीक