पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४८९

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अध्याय १० वा] । ४४७ [रानी लक्ष्मीबाी घोष करने लगे । रणगर्जना से भाकाश गूंजा दो । क्यों कि, झांसी की सहायता के लिओ तात्या टोपे सेना के आगे चल रहा है ! ___ कानपुर को विडम को हरा कर, और कॅम्बेल से हार कर, गंगा पार कर, तात्या श्रीमंत नानासाहब की छावनी में आ पहुंचा। अस के बाद, नानासाहब को छोड, कालपी के पास जमनापार हो गया। पेशवा के शुरू किये स्वाधीनता-युद्ध में हाथ बॅटाने से चरखारी-नरेश ने अिनकार करने पर सेनापति तात्या ने अस की राजधानी पर घाग बोल दिया, अस देशद्रोही को अच्छा दण्ड दिया, २४ सोपें छीन ली आर तीन लाख का जुर्माना वसूल किया। फिर तात्या कालपी की ओर मूडा । वहाँ असे रानी लक्ष्मीबाभी का पत्र मिला, जिस में झाँसी के धेरै को तोड़ने में सहायता करने की प्रार्थना थी । तात्या ने प्रधानमंत्री रावसाहब के पास पत्र भेजा और अन से आज्ञा पाते ही अंग्रेजों की पिछाडी पर वह टूट पडा । अिसीसे लक्ष्मीदेवी के मॅड पर स्मित की रेखाओं दौड गयीं । बच. 'पन में तात्या और लक्ष्मी मेक साथ, बिना किसी का ध्यान पड़े, ब्रह्मावर्त के राजमहल में खेले थे । आज भी वे दोनों खेल रहे है-रणमैदान मे । ओक झॉसी की घुसबन्दी पर आग की लपटों में खड़ी है, दूसरा २२ हजार सेना के साथ बेतवा के पास है। बचपन में अन के खेल पर को भी खास ध्यान न देता था। आज सारा संसार अन के खेल को रसपूर्वक देख रहा है । अितनी बडी सेना के साथ तात्या को आते दख अंग्रेज घबड़ा गये । अस समय बहुत थोडे गोरे सैनिक होने से अन्हे, सचमुच बडा. धोखा था। क्यों कि, सामने से रानी लक्ष्मीबाभी और पीछे से अपने बाभीस सहन पजों से झपटने पर अतारू मराठा शेर तात्या । तो फिर हयू रोज पर झपट कर असे फाड क्यों नहीं खाता ! वह झपटने को था, तम अस के बाजीस सहस । पंजे लूले पड़े मालूम हुसे। बिना पजों के शेर क्या करेगा ? हाय, हाय ! बेतवा के किनारे क्रातिकारी दस्तों ने कायरता का लज्जास्पद प्रदर्शन किया। झाँसी की सेना सामने से और तात्या की मागे से हमला करने की योजना सचमुच सराहनीय थी। किन्तु निराशा के तेहे से अंग्रेजों ने तात्या पर हमला किया