पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अन्याय २ रा] १७ [कारणो का सिलसिला पैठकर उगने लगा था। अंग्रेजोके राज्य हडप जानेसे राजा तथा महाराजा तो अदरसे जलभुन रहे थे। ___ पलासीकी शतमवत्सरी जल्द ही पूरी होने को है इस विचारसे तो जनतामे एक अजीब आशाकी किरण चमक रही थी और खास कर अंग्रेजोकी मातहत सेनाके सिपाही ही अंदरही अंदर क्रोध और कीनेसे जल रहे थे। ऐसे समयमे इस दवे हुए असतोपको शान्त करनेका प्रयत्न करनेवाला दूसरा कोई भी वाइसराय यदि हिदुस्थानमे आया होता तो भी इस काममे वह कहॉतक सफल होता यह कहा नहीं जा सकता; उसकी सफलतामें सदेह था। उस समय यह प्रश्न रहा ही न था कि कपनी सरकारकी राजनीति अच्छी है या बुरी, भारतभरमें सवाल यह हो रहा था कि कंपनीका राज यहाँ रहेही क्यों? इस सवाल का फैसला करनेका और एक जोरदार कारण मिला था-डलहौसीका वाइसरायके नाते भारतमे आना। क्यों कि, उसने मारनेके लिए मीठेमे घोले विषकी गोली देनेकी नीतिको फेककर, खुल्लमखुल्ला और प्रत्यक्ष अत्याचारका प्रारम किया, जिससे सन्न जनताके अंत:करणोमें गहरी चोट न लगे तो और क्या हो? __ अंग्रेज इतिहासकारों ने डलहौसी का वर्णन " अंग्रेजी सामाज्य का सस्थापक” कहकर किया है। यही एक बात डलहौसी की क्षमता तथा स्वभाव का मान करा देने को काफी है। जिस राष्ट्र में देयो 'को छीनने के अन्याय्य युट्ट और पराये राष्ट्र तथा वशपर किये अत्याचार सबको पसंद होते है, उस राष्टमें अकथनीय अन्याय तथा शोषण करनेवाले ही लोगों को सम्मानित किया जाय तो इसमे अचरज की कोई बात नहीं है। ऐसेही इस साम्राज्यमे (जहाँ अन्याय तथा अत्याचार अधिक से अधिक करने की होड' लगती हो) लॉर्ड डलहौसी को साम्राज्य सस्थापक की सुयोग्य उपाधि समर्पण की गयी थी। सचमुच इससे बढकर उसके स्वभाव का यथातथ्य वर्णन करने को दूसरा शब्द मिलना भी दूभर हो चुका है। जिसकी पृष्टपोषक अंग्रेजो की सौ साल की कुटिल राजनीति की कुतपस्या रही थी, जिसमे दुर्दम्य आत्मविश्वास था किन्तु स्वभावसे जो अत्यत हेकड था, जिसके रक्तमासमे अग्रेजा की आमुरी साम्राज्यसत्ता का घमड तथा प्रतिष्ठा पूरेपूर मिद चुके