पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४९१

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अध्याय १० वा] ४४९ [रानी लक्ष्मीवाओं किन्तु अमरकीर्ति की मृत्यु तुम से वह कदापि नहीं छीन सकता। वीरो, तो फिर काहे की निराशा ! ठहरो ! निश्चित, दृढ और धीरता की वाणी रानी लक्ष्मी के मुख से सुनोः 'अब तक झॉसी पेशवा के बूते पर नहीं झूझ रहा था; आगे युद्ध जारी रखने के लिखे भी अन की सहायता की खास आवश्यकता नहीं है। अब तक तुमने आत्माभिमान, साहस, दृढ निश्चय अव वीरता का सराहनीय परिचय दिया है । अब भी तुम असी तरह से काम लो, और मै तुमसे आग्रहपूर्वक कहती हूँ कि धैर्य से और माणपन से लो।" हॉ, प्राणपन से लडो ! सावधान ! मास बाजे बजने दो; करनाल 'के जायें ! वीर गर्जनासे आकाश गूंजने दो बडी तोपों को धडधडाने दो! ३ अप्रैल की पहली किरणें पृथ्वी पर आ चुकी हैं और अंग्रेजों का आखरी हमला झॉसी पर हो चुका है। सब ओर से वे आ रहे हैं और दबाव बढ़ गया है। बस, तो फिर लडो; जोरसे, डटकर, प्राणपन से लडो। युद्धदेवीने कैसे तलवार सॅवारी है देखो। और वीरताकी पराकाष्ठा कर दिखाने के लिअ वह शत्र की हरावल को विचलित कर रही है। बिजली की तरह रानी धूम रही है किसी को सोने के कडे, किसी को पोशाक बक्श रही है। किसी की पीठ ठाकती है तो किसी को अपनी मुस्कान से अत्साहित कर रही है। तब, गुलाम्म गोशखा और कुंवर खुदाबक्ष ! तोपों से आग बरसाओ ! शत्रु प्रमुख द्वार तोड रहा है। किलाबदी को तोड़ रहा है; आठ जगह निसेनियाँ लगायी गयी हैं। 'हरहर महादेव । किले से, बों से, हर घर से गोलियों की बौछारें हुी; बाढों का तांता बंध गया । तोपें लाल गोले अगल रही है। 'मारो फिरंगी को' -क्या वह युद्धदेवता है या कालीमाता स्वयं खडी है, जो भीषण युद्ध कर रही है ! 'हर हर महादेव ! ले. डिक और ले. मेयकले जोहान सीढ़ियां चढ रहे हैं और अपने आदमियों को पीछे चढने को ललकार रहे हैं। घडाम, धडाम ! साहसी अंग्रेज काले के गाल में चले गये ! कोभी है सुन के पीछे