पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४९७

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अध्याय १० वॉ] ४५५. [रानी लक्ष्मीपाश्री . फिरसे लक्ष्मीबाी तथा शूर तात्या टोपे ने घनघोर सग्राम की सिद्धता करना शुरू किया। अिन दोनों को युद्ध की सिद्धता करने के लिअ छोड, हम अब ब्रिगेडियर विटलॉक की गतिविधि का सरसरी दृष्टि से निरीक्षण करें,जिसे हम कुछ पहले छोड़ चुके हैं। नर्मदा तथा गंगा-जमना के बीच के प्रदेश को फिर से जीतने के लिओ दो सेनामें चली थीं। अन में से अक ने, जो ह्यू रोज के नेतृत्व में बढ़ी थी, झॉसी जीत लिया था, जिस का वर्णन हम पहले दे चुके हैं। झॉसी जीतने के बाद अराजक और गडबड वहाँ मची। लूट के काम में तो नादिरशाह की बराबरी की गयी। मंदिर और मूर्तियाँ भ्रष्ट कर दिये गये; भयंकर इत्याकाण्ड हुआ। अस के बाद यह सेना मुहीम जारी रखने के लिअ कालपी बढनेवाली थी। जिस का अन्तिम भाग पूरा करने का कार्य ब्रिगेडियर विट. लॉक को सौंपा गया था वह १७ फरवरी को जबलपुर से चला; अस के साथ गोरी पलटन और मद्रासवाली काली पलटन, गोरा और काला रिसाला और अत्कृष्ट तोपखाना था। सागर में बड़ी शान से अस ने प्रवेश किया जहाँ अग्रेजनिष्ठ ओरछा का राजा असे मिला । फिर यह सेना बॉदा के नवाब को जीतने चली, जो असमान्त के मुख्य क्रांतिनेता थे। क्रांति की पहली लहर में झाँसी, सागर और अन्य स्थानों में क्लर कलें हुी थीं और वहाँ के गोरे जहाँ शरण मिली वहाँ जान बचाने को भाग गये। बादा के नवाब ने अन्हें अपने राजमहलमें सुरक्षित रखा था और अन की अच्छी तरह देखभाल की। किन्तु साथ साथ क्राति के धमाके से थर्शनेवाली ब्रिटिश सत्ता के कधावर को फेंक देने के काम में भी व्यस्त था। शुरू से असने परायी सत्ता के सभी चिन्ह मिटा दिये थे और वह स्वतंत्र नरेश की हैसियत से राज कर रहा था। जब अस ने देखा कि अंग्रेजी सेना अस' का राज छीनने आ रही है, तब अपनी मजा के अनुरोध तथा सहायता से युद्ध की सिद्धता की। कभी मुठभेडों के. बाद हार कर नवाब अपनी सेना के साथ कालपी चल पड़ा और १९ अप्रैल को विजयी विटलॉक ने बॉदा में प्रवेश किया। अब किरवी के राव पर चढाभी, होनेवाली थी।