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'१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य-समर

ग्रंथ की जीवनी

१८५७ के भारतीय स्वातंत्र्य समर के अिस महान् ग्रंथ में कही हुअी प्रामाणिक कथा अद्वितीय है। यह ग्रंथ एक प्रामाणिक इतिहास के नाते संसार के किसी भी अच्छे ग्रंथालय का गौरव बढायगा; किन्तु इस ग्रंथ के अद्वितीय लेखक के समान ही इस ग्रंथ की जीवनी भी अद्भुत प्रसंगों से भरी हुई है। श्रीकृष्णचंद्र के समान इस ग्रंथ को गर्भ में ही मार डालने के जतन हुअे, जन्म के बाद दूर दूर भागना पड़ा, जनता के हाथ में पहुँचने को वर्षोंतक झगड़ना पड़ा है।

इस ग्रंथ का उद्देश और नाम का स्पष्टीकरण लेखकही ने दिया है। वीर सावरकरने लंदन में रहते हुए ' अभिनव भारत ' की ओर से स्वसंपादित 'तलवार' पत्र के एक लेख में, जो पत्र पेरिस से प्रकट होता था, लिखा था,' भारत माता स्वाधीन बनाने के लिए हिंदुस्तान फिर एक बार अुत्थान करे और फिर से एक सफल स्वातंत्र्ययुद्ध करे, यही १८५७ के भारतीय स्वातंत्र्य-समर ग्रंथ लिखने का हेतु है। 'लेखक का विचार था, कि आगामी स्वातंत्र्ययुद्ध मे राष्ट्र की सर्वांगपूर्ण सिद्धता होने के लिए जिस संगठन और कार्यपद्धति का अवलंबन क्रांतिदल के अनुयायियों को करना पड़ेगा अुस की रूपरेखा इस ऐतिहासिक ग्रंथ के द्वारा क्रांतिकारियों के सामने प्रस्तुत हो जाय। १८५७ में लड़े गये स्वातंत्र्य-समर का दिव्य तथा उदात्त आदर्श-राष्ट्र के सामने यदि न रखा जाता, तो क्रातिं-संदेश