पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५०१

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अध्याय १० वॉ] ४५९ [रानी लक्ष्मीबानी दुर्भाग्यसे वह सारा संगठन तथा अनुशासन पराजय के बाद अमल में आने के बदले पहले दिखायी देता तो अच्छा होता! अिम्र के बाद क्रांतिकारी कालपी को पहुँचे। और फिर हार का दोष मेक दूसरे के सिर महने की शेड लगी। पैदल सेनाने रिसाले को कोसा; रिसाले ने झाँसीवालों की निंदा की; और सब मिल कर तात्या टोपे की गलती बतायी। किन्तु यह आपसी बखेडे को देखने तात्या कालपी आया ही न था; वह तो जालवण के पास चरखी गाँव में अपने पितासे मिलने गया था। वह असके बाद कहा जायगा ! ध्यान रहे रास्ते में गवालियर पडता है। हम आशा करें कि अिस अनोखे पत्र और असके पिता की भेट अत्यंत प्रेमपूर्वक तथा आनदसे हो और फिर क्रांतिके अिस महान् नेता को अपनी बडी बडी योजनाओं को सफल बनाने में तुरन्त जश मिले। अिस मनचाही यात्रा में तात्या के चले जाने के बाद रानी लक्ष्मी पेशवा के शिविर में मयीं । कॅचगाँव के पराभव से पेशवा को बडा रंज हुआ था। अपने स्फूर्तिपद शब्दों से अन की अदासी को नष्ट कर, घीरज बंधाते हुझे शूर झॉसीवाली ने कहा- आप यदि सेना को फिर से संगठित करें तो शत्रु अस पर कभी विजय नहीं पा सकता' रानी के शब्दों से बांदा के नवाब को अत्साह प्राप्त हुआ। स्फूर्तिप्रद शब्दों में रचे घोषणा-पत्र फिर से क्रांतिसेना में वितरित हुओ। आज जमना के किनारे भीड जमा हो रही थी। तलवारें और तो चमकती है; मातभमि की स्वाधीनता की साधना को संतप्त सिपाही जमना मैया के आशीर्वाद मांग रहे है-जिस तरह का मेला जमना किनारे लम्बी मुठभेड की हरावल होने पर भी किसी जगह घबराहट नहीं थी। सैनिक गोली चलाते, फिर पीछे की पाती के पीछे दौड जाते और अपनी बदूकें भरते। फिर आगेवाले गोलियाँ चलाते और पीछे अपनी जगहपर हट जाते। पीछा करनेवाले यदि बहुत जोर करते तो वे डट कर खडे हो जाते और घमासान लडाणी पर मजबूत करते।" मॅलेसनकृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड ५ पृ. १२४ । शत्रु की जिस प्रशंसा से पांडे की सेना का श्रेष्ठत्व निखर पडता है।