पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५०२

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अग्निप्रलय ] ४६. तीसरा खंड पहले कभी किसी ने न देखा होगा। सब ओर मातृभूमि और धर्म की जय की पुकारें प्रतिध्वनित हो रही हैं। 'जय जमना मैपा! तुम्हारा पवित्र जल हाथ में ले कर हम प्रतिज्ञा करते हैं, कि फिरंगी नष्ट होगा, स्वदेश स्वतंत्र होगा। स्वधर्म की पुनः स्थापना होगी । जय जमना ! यह सब-होगा तभी हम जीवित रहेंगे; नही तो हम रणमैदान में सदा के लिझे सो जायेंगे । कालिंदी माता ! हम विधार प्रतिज्ञा करते हैं। तीन बार शपथ किये वीरो ! मैदान में बढो, वह रण-लक्ष्मी तुम्हें अत्तर की ओर बुला रही है। रावसाइब सारी सेना का नेतृत्व करेंगे। ड्यू रोज के नेतृत्वमें होनेवाली २५ वीं पैदल पलटन को भगा दो। वे सब हिंदी है-अिन देशद्रोहियो को भगा दो। यह मेजर ऑर बढा क्या -अस की भी वही गत कर दो। कालपी के सामने के मैदान में हिलोरनेवाले हिस्से की सेना को सुरक्षित रखने पर हमारी स्थिति लगभग अजेय है। अरे, देखो ! सेनामुख पीछे हट रहा है। वह बहुत अधिक आगे बढ गया था और पीछेसे पूरी सहा. यता न पानेसे पीछे हटना पड़ा है। दौडो, रानी लक्ष्मी, अन की रक्षा के लिये दौडो। तलवार हवा में फेंकते हुझे बिजली-सी वह दौड पडी अपनी सेना को बचाने ! अग्रेजों के दाहिने पासे पर लाल-गणवेशधारी सवारों के साथ टूट पडी । अकदम अंग्रेज ठंढे पडे, जितना जोरदार हमला था वह ! और लाचार हो पीछे हट गये। अिक्कीस साल की लडकी की यह बिजली सी झपट, अस के घोडे का वायुवेग से दौडना, दायें-बायें गाजर मूलीकी तरह अस का गोरों को काटना, अिस दृश्य को देख कौन होगा जो अस के लिअ न लडेगा ? किसे अिससे अत्साह प्राप्त न होगा ! रानी के रणकौशल से सभी क्रांति कारियों में अत्साह बढ गया । रक्तात भीषण युद्ध शुरू हुआ ! हलकी-तोपा के - गोरे तोपची अक बेक कर के मर गये । तब रानी अपने रिसाले के साथ आग अगलती तोपों पर धावा बोल गयी। तोपची भागे । घोडों पर होनेवाला तोपखाना तितर बितर हो गया । क्रांतिवीर सब ओरसे आगे बढ़ने लगे। आजतक हाथ में न आनेवाले फिरंगी को मटियामेट करने का मौका मिलने से चे आनंद से बौखला गये और अन सब के आगे चमकती थी रानी लक्ष्मी !