पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५०५

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अध्याय १० वाँ] ४६३ [रानी लक्ष्मीवाभी कालपी में लडाया: ठीक तभी अकायेक तात्या को अपने पिता के दर्शन की सनक आ गयी; और आगे चल कर यह सनक, पितृदर्शन की धुन तो युद्ध की विस्मति कराने लगी। और जिसतरह अपने पिता के दर्शन करने की अमंग पर अंकुश न रखते हुझे वह सीधे चरखी चला भी मया । मिस सनक का भेद क्या होगा होगा यही, कि कालपी का पतन होने पर कातिकारियों के हाथ में, कोसीन कोमी सुरक्षित स्थान या किले का होना अत्यंत आवश्यक था; नयी सेना मिल जाय तो अच्छा ही था। और जिसी कारण से यह काति का अग्रदूत कालपी से छटक कर गवालियर में घुस पड़ा। देखो, अब क्रांति का वात्वाचक फिरने लगा है। सेनाधिकारियों के शपथपूर्वक आश्वासन तात्या ने प्राप्त किये और दरवार के अत्तरदायी व्यक्ति, सरदार तथा अन्य की लोगों से संबंध प्रस्थापित कर क्रांतिके लिये असने मेक स्वतंत्र सेना बना ली । अपनी शक्ति भर सब कुछ करने तथा देने के आश्वासन मिन लोगोने दिये थे और येक महीने के अंदर गवालियर की सारी सेना मानो तात्या की हथेली में आ गयी। फिर असने गवालियर के मर्मस्थानों को जान लिया और शिदे के सिंहासन ही के नीचे सुरंग गा कर तात्या टोपे रावसाहब के पास गोपालपुर में आया । अपने पिता के दर्शन' वह कर चका था। गवालियर की प्रजा को क्रांतिकार्य की ओर कर लेने में सफल हो तात्या आ पहुंचने के समाचार सुन कर रानी लक्ष्मी को बड़ा आनंद हुआ और असने पेशवा को सीधे गवालियर पर चढ जाने का आग्रह किया । २८ ममी को क्रांतिकारी अमीनमहल को पहुंचे। लंबरदार ने अन्हे रोकने की चेष्टा की। अत्तर मिला, "तुम कौन होते हो रोकनेवाले १ इम पेशवा है और स्वराज्य और स्वधर्म के लिये लड रहे हैं। सारे संसार को मालूम हो जायकि इम पेशवा हैं और मितिहास भी कान खोल कर सुने हम स्वराज्य और स्वधर्म के लिये लड रहे है।" __ श्रीमत रावसाहब के अिन शब्दों से कायर चुप हो गये और वहाँ के हजारों देशभक्तोंने कातिवीरों का हृदय से स्वागत किया। तब पेशवा सीधे