पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५०८

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अग्निप्रलय रीति के अनुसार (रघुवंश स. ४ श्लो. १२) राजा वही बनेगा जो प्रजा को सुखी करने ही के लिओ राजपद को स्वीकार करेगा! । ' हाँ, ३ जून का शुभ दिन निकम्मे हो कर बिताना अच्छा नहीं ! स्वराज्य को अभ्यंग स्नान से नहला कर स्वदेश के सिंहासन पर बिठाना आवश्यक है। मिस लिमे फुलबाग में अक बड़ा समारोह मनाया गया। सरदार, राजनीतिज्ञ, सेनाधिकारी, जो भी क्रांतिकार्य में पेशवा का साथ देने को राजी थे, सब अपनी श्रेणी के अनुसार विराजमान थे। तात्या टोपे के नेतृत्व में अरब, रुहेला, पठान, राजपूत, रगड, परदेसी, हर प्रकार के वीर अपने सैनिक गणवेश में तलवार लगाये आये थे। श्रीमंत पेशवाने भी अपने पद के वस्त्र पहने थे; मस्तक पर सिरपंच और कलगी तुरी. कानों में मोती के कुडल, गले में मोतियों तथा हीरों के हार थे। पेशवा के समस्त सम्मानचिन्हों के साथ, भालदार, चोपदारों के ललकारों में श्रीमंत दरबार में पधारे। सब ने झटक-पट वंदना की और आनंद के ऑसुओं से डबडबायीं आँखों.के साथ वे सिंहासन पर विराजमान हुसे। फिर उन्होंने सब को वक्तृतापूर्ण शब्दों में धन्यवाद दे कर रामराव गोविंद को , प्रधानमंत्री नियुक्त किया । तात्या टोपे सेनापति बने और रत्नजडित तलवार अम को भेंट की गयी। अष्ट प्रधानों का चुनाव हुआ। सैनिकों में २० लाख रुपये बँाँटे गये... ( पारसनीसकृत रानी लक्ष्मीबाजी की जीवनी पृ. ३०९.) नानासाइब पेशवा के प्रतिनिधि रावसाहेबने जिस तरह अक नया सिंहासन जमा कर अक नयी आशा, नया प्राण क्रांतिदल में प्रेरित किया और विश्रंखल बने क्रांतिकारियों को अक सूत्र में पिरोने के लिये अक नया केन्द्र, मेक अड्डा पैदा किया । युद्ध की धूम के बीच ही अिस प्रकार राज्यारोहण समारोह संपन्न करने और वंदनार्थ तोपों की बाढ दागाने में तात्या टोपे का पागलपन नहीं था । संसार ने क्रांति को मृतप्राय देखा था, जिसे अिसी अपाय से तात्याने निराशा के गर्त से अठाया था। ससार कुछ आनंद से, कुछ निराशासे चिल्लाया था!-'क्रांति अब मर गयी; अस