पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ रानी लक्ष्मीचाी ४६७ अध्याय १० बॉँ] में कोओी धुकधुकी नहीं, किन्तु यह- कैसा जादू है! तात्याने गोपालपुर में मरी मिट्टी को अठाया, यों अषपर फुँक मारी और सारे संसरने थकित हो कर! देखा, कि अस मिट्टी से अेक सिंझसन अूपर अठा, जिस के चरणों में लाखों रुपयों की झनझनाइट थी । महान् आश्र्य ! देखे, इजारों तळवारें बढे रही हैं । सुनो, तोपों की बादें बंदुनা कर रही हैं। अेक नयीं सेना खडी हु है | नयी तोपि तैयार है, तात्याने भेक नया राज जीता है। किन्तु संसार को अपने चमत्कारों से थाकीत करने के लिये तात्याने भितनी चेध्टा थोडे ही की है ? असे मालूम था, कि मराठा' पेशवा के स्थापित झोने की गर्जना विन तोपों द्वारा झुन कर सब दूर फैले हुअं क्रातिकारियों को केंद्रित हेने की प्रेरणा हेगी; तेज और आशा बढेंगे। वह जानता था कि गवालियर में राष्ट्रीय झण्डे को लह- राता देखकर अनरमें असीम अुल्साइ औौर साइस पैदा होगा। अुसने भॉप लिया था, कि नये संस्थापित सिंहासन के आद्र से, कोशी आकर्षण केन्द्र न होनेसे, फैले हुंओे अराजक का स्थान अनुशासन लेगा। तात्याने यह सब ताड लिया और अस की कल्पना बिलकुल ठकि निकली । पांडेदल के शरीर में फिरसे जान गृथीं नहाँ अेक ओर तात्याके देशवासियों में अत्साह की लहर दौड गयीं, बाँ दूसरी ओर अभी सुस्ताये' अब्रेजी सैनिकों का दिल बैठ गया। भिसी ईतु से तात्या और अन्य नेताओंने राज्यासेहण की धूम मन्चारयी थी। अुनका यह गहरा पडयंत्र सफल हुआ । क्यों कि, तात्याके तोपों की गढगढाइटें इयू रोज की सुस्ताने की बिच्छा धूल में मिल गयी। जिस चतुरता और नीतिज्ञता का परिचय, गवालियर पर कब्जा करने में तात्या और लक्ष्मीबाने दिया अस के बारे में मेलेसन 'कइता है : गया वह बताया गया है...इयू रोज को यह भी मालूम हुआ, कि अब और देरी करनेका - परिणाम क्या होगा ! बागियों के ्थ से गवालियर यदि जल्द छीना न जाय'तो क्या क्था भयंक्र परिणाम हंगे असकी कल्पना करना कठिन था। समभय [मिल जाय तो गवा্িपर को दखल करने से जो असीम राजनैतिक तथा सैनिक शाक्ति तात्याने प्राप्त की थी और मानकव शाक्ति, धन, और सामग्रीके जो साधन असे मिञ्ल गये थे, अुसके आ ৫ असम्भव सम्भव कसे बन बलपर कालीमें ही