पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५१

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अध्याय २ रा] [कारणों का सिलसिला क्यों नहीं कि अब जल्द ही इससे बढकर भडकीला लालरंग सबदूर फैलनेवाला है? पाठकगण! पंजाब और बरमाका अंग्रेजी साम्राज्यमे शामिल होनेका पूरा मतलब तुम्हारे ध्यानमे आ चुका है? केवल नामों से इसका ठीक खयाल हमें नहीं आ सकता। अकेला पंजाबही ५०,००० वर्गमील होकर उसकी आबादी लगभग चार करोड है। जिनके किनारे पुराने समयमे ऋषियोंने पवित्र वेदमत्रोका सामगायन किया था, वेदों की उन्ही पचनदियों के जलसे इस भूमिकी सिचाई हुई है। ऐसे प्रदेश को जीतने के लिए यूनानसे अलक्सादर दौड आया था तब इसी भूमि की रक्षाके हेतु पुरुराजाने घमासान युद्ध किया। ऐसे प्रदेशको हडप कर रावण की हवस भी शान्त हो जाती! किन्तु भूमि हडप जाने की डलहौसी की भूख केवल पंजाब खानेतेही नहीं, बल्कि वरमा का विस्तीर्ण भूखण्ड निगलने पर भी शान्त न हो सकी! इसतरह भलेही अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य की चतुःसीमाएँ वढायी किन्तु उनके अंतर्गत प्राचीन राजाओं की समाधियाँ तो बची रही थी। इसीसे उनको भी उखाडकर समूची भूमि समतल करनेकी डलहौसीने ठानी और वह उसी के पीछे पडा। उन समाधियोंके रहनेसे कुछ बहुत बड़ा हिस्सा रुक जानेका कारण इस करतूतकी तहमें नहीं था, उसे यह डर था कि कहीं इन्हीं मृत स्मारकोंमें से, एकदिन, भारत के साथ किये गये अन्यायोंका प्रतिशोध लेनेवाला, कोई वीर प्रकट न हो। और, सचमुच सातारेके मृत अवशेषों के नीचे एक वैभवशील हिंदुसाम्राज्य दवा पड़ा था। और कयामत के दिन होनेवाले ईसाके मृतोत्थान में इंदविश्वास करनेवाले इस डलहौसी को यदि यह डर हो कि इसी सातारेसे एकाध हिंदुसम्माट निकल कर विदेशियों को मटियामेट करते हुए स्वराज्य की स्थापना करेगा, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं थी। स. १८४८ के अप्रैलमें सातारेके महाराज अप्पासाहब की मृत्यु हुई। यह सवाद पाते ही सातारा जब्त करनेकी डलहौसीने ठानी। और बहाना? यही कि महाराज निःसन्तान मरे। देहात के एक साधारण खेतीहर की झोपडी भी उसके निःसन्तान मरनेपर जब्त नहीं की जाती, बल्कि उसके दत्तकपुत्रको या आत्मीय नातेदारोंको दी जाती है। और सातारेका राज्य किसी किसान की कुटी तो थी ही नहीं; अंग्रेजी राजका वह 'मित्र' था।