पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५१०

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अनिमलय] . ४६८ [ तीसरा संड तितर बितर हुी सेनाके टुकडों को जोड, फिर वह नयी सेना खडी करेगा और भारत भर मराठों का अत्थान होगा। अस को प्रकृतिने जो अदम्य जीवर का गुण दिया था, असके बूतेपर वह दक्षिण महाराष्ट्र में फिरसे पेशवा का झण्डा लहराने में समर्थ होगा । अस प्रदेशसे हमारी (अंग्रेजों) सेना निकाली गयी थी और कहीं मध्य भारतमें तात्या को विशेष विजय मिल जाय तो यहाँ के लोग फिरसे अस साधना के पक्ष में जायेंगे, जिस को पुरी करने में अनके पुरखाओंने अपना खून बहाया था।* यहाँ तक सब ठीक हुआ । अक बार तो ह्यू रोज को चौंका कर असे बेमन बना दिया। अब रानी लक्ष्मी की बातपर ध्यान न देनेवालों को धिक्कार है। अक युद्ध को छोड़कर अन्य सभी समारोइ बंद कर दिये जायें। किन्तु, दुर्भाग्य ! क्रांतिकारियों को जो मस्ती आ गयी थी अस के नशेमें सेना को अद्ययावत् सज्ज रखने की ओर अन्होंने ध्यान न दिया। अशोआराम, अच्छी दावतें तथा घातक लीचडपन में सारे लोग मगन थे। शायद अन्होंने समझा; बस, यह है स्वराज्य की सीमा ! ___वास्तव में वे स्वराज गँवा रहे थे। क्यों कि, थकित हुओ ड्यू रोज ने अपने सबसे अच्छे सैनिकों के साथ बड़े वेगसे गवालियरपर हमला किया ।अपने साथ वह देशद्रोही शिंदे को लाया था और घोषणा यह थी, कि केवल शिंदे के लिओ अंग्रेज लडेंगे । गवालियर की भोली प्रजा को धोखा देने की यह तरकीब' थी। क्यों कि, असमें अंधी राजनिष्ठा का नीच और आत्मनाशक गुण था, जिससे वह प्रजा महाराजा शिंदे के विरुद्ध न लडेगी। हॉ, किन्तु यह पुराना संसार अब नये रूप में बदल गया था। अबतक क्रांतिकारियों को नमाने में सफल तात्या अंग्रेजों का मुकाबला करने आगे बढा । मुरार की छावनी के सैनिकों को अंग्रेजोने, हराया था। अब, पराजय की छाया अनपर पडनेसे, क्रांतिनेताओं में बडी सनसनी पैदा हुी। रावसाहेब बाँदा के नवाव की कोठी की ओर जल्दी जाते दिखायी दिये और बाँदा के नवाब रावसाहेब के पास दौडे । अिस

  • मलेसनकृत जिंडियन म्यूटिनी खण्ड ५ पृ. १४९-१५०