पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५११

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सारे गडबड में एक मात्र रानी लक्ष्मी ठंढे दिलसे काम कर रही थीं और सब प्रकार से सिद्ध थी । तलवार म्पानसे बाहर थी । उन्हे क्या डर है ? आशा और निराशा को उन्होने कब का पैरोंतले कुचला था । जिस पृथ्वी की हर चस्तु के लिखे उन्हे वैराग्य हो गया था । हॉ, बेक मात्र आकांक्षा रही थी,- रानी की अन्तिम साँस तक उस की तलवार के आधारपर स्वाधीनता का झण्डा ऊचाँ रहे । दोनों को व्यथे की मृत्यु न आय,केवल खेतमैं देटनों रहे तो चिंता नहीं । लिपी से रानी ने रावसाहब को घरिज बँधाया, उससे बन सके उस प्रकार अव्यवस्थित सेना की पुर्नरचना की और पूरबी हार की रक्षा का मार अपने सीर ले लिया. । लक्ष्मीखाउने एक ही मॉग की'मै प्राणों की बाजी लमाकर अपने कर्तव्य को यूरीतरह निभाहूँगी; तुम अपना कर्तव्य करो । '

' रानी ने अपना सैनिक गणवेश धारण किया; बढिया घोडे पर छढी; रत्नजडित ख्ड्ग को निष्कोशित किया; और सैनिकों को ' आगे बढो' की आज्ञा दी । कोटा की सराय के आसपास, जिस की रंक्षाका भार अनुपर था, भोर्चाबंदी की । और जब सब ओऱ अंग्रेज सेना दिखायी पडी तब तुरहीं, करनाल और ढोल सब मारू बाजे एक साथ पील पडे । काश, ड्डानकै पास

उनके समान धैर्यशील और साहसपूर्ण सेना होती । रानी के नेतृत्व मे ड्डाहण्ड और डरपोक भी वींर बहादूर बन जाता; उन के तथा उन के अपने चुनिन्दे घुडसवारों के साथ रानी ने अंग्रेजो पर कठिन हमला किया । लक्ष्मीबाझी की में सखियॉ-मंदीर और काशी-भी उनके कंघे से कंघा भिडा कर लढी । पुरुष वेश से विभूषित जिन दो सुंदर कन्याओं की स्मृति रणरागिणी रानी लक्ष्मीबा के साथ साथ, जब तक वितिंशस जैक्ति शे तब तक, अमर

रहे । स्मिथ जेसा जैक जनरल रानी की सेना -कौ दबा रहा था; किन्तु रानी का रैणा और शौर्य देखते ही बनता था । रिन भूर बिजली के समान वह'

यान मैं चूंग रही थी । फुलकी बल पर वीज जोरदार हमले कति किन्तु, '

बर घार वह अपृनी पक्केती को प्रचलित न' होंने देती थी । ड्डास की' सेना भी कर्गीउत्साह की उभादृरें नीली हरस्वल पऱ घावा बोल देही" और कबैहुँ खरनुने कटि वृति । अन्तभे स्मिथ को हटना पकी वुत्सने चट्ठान सि