पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५१३

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अध्याय १० वाँ] ४७१, [रानी लक्ष्मीबाी किन्तु अितने असाधारण शौर्य से लड़ते हुअ असने देखा, कि अंग्रेजी सेना पिछाडी से आक्रमण रही है; क्यों कि, पिछाडी की रक्षा करने वाले क्रांतिकारियों की पॉतियों को असने तोड दिया था। तो ठढी पडी थीं; मुख्य सेना तितर बितर हो गयी थी, विजयी ऑिग्लिश सेना रानी पर चारों ओर से आक्रमण कर रही थी और अस के पास मात्र १५/२० सवार थे। रानी लक्ष्मीने अपनी दो सखियों के साथ घोडे को मेडी लगायी । शत्रु की पाँतियों को चीर कर वह परले सिरे पर होनेवाले लोगों से मिलना चाहती थीं। गोरे हजार घुडसवारोंने रानी को न जानते हुसे भी गोलियों की बाढ बरसायीं और शिकारी कुत्तों के समान अस का • पीछा कर रहे थे। किन्तु रानी ने असाधारण वीरता से अपनी तलवार के बल पर मार्ग कर लिया और आगे बढ़ी। सहसा चीख सुनायी पडी 'बासाहब । मरी, मैं मरी ।' हाय यह किस की पुकार ? रानी ने घूम कर देखा, अस की मेक सखी मंदार को अक गोरे सैनिक ने गोली मारी थी। वह मर गयी। बिजली की तरह वह क्रोधभरी लक्ष्मी दौड आयीं और मेक ही झटके से अस फिरंगी के दो टुकडे कर दिये । मंदार का प्रतिशोध अन्होंने ले लिया। अब फिर घूम कर वह आगे बढ़ीं। मार्ग में अक नाला आया। बस, मेक कुदान और झॉसीवाली फिरंगी के चंगुल से मुक्त हो जाती। किन्तु अनका वह नथा घोडा हिचकिचाने लगा। काश, अनका पुराना वोडा होता। जैसे कोभी जादूी असर हो, वह घोडा गोल चक्कर काटने लगा, किन्तु कूदने से अिनकार करता । मेक क्षण में गोरे सैनिक रानी के बिलकुल पास पहुंच गये। फिर भी न डर है, न झुकना । अकेली रानी की तलवार को अन अनेकों तलवारों से टकराना था। फिर भी रानी अन पर टूट पड़ी। सब के साथ वह लड रह। थीं। हाय, अक गोरे ने पीछे से सिर पर वार किया और अस के साथ, सिर का दाहिना हिस्सा कट कर रानी की दाहिनी ऑख बाहर लटकने लगी-असी समय दूसरा वार छाती पर हुआ । लक्ष्मीदेवी ! लक्ष्मी ! तुम्हारे पवित्र रक्त की आखरी बूंद अब झरनेवाली है, तब ले यह अन्तिम बलि, माता! अस पर वार करनेवाले फिरंगी को असी दशा में भी दुकडे टुकडे कर डाला और अब