पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५१४

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अमिमलय ] . [तीसरा खंड रानी अन्तिम साँसे लेने लगी। रानी का विश्वासपात्र नौकर रामचंद्रराव देशमुख पास था। असने रानी को अठाया और पास की मेक झोपडी में असे ले गया। बाबा गंगादास ने रानी को ठंढा पानी पिलाया और बिछौने पर लिटा दिया । रक्त से लथपथ अस देवीने अपना शरीर बिछौने पर लिटा दिया और शान्तिसे अनही आत्मा स्वर्ग सीधार गयी। रानी की अन्तिम साँस निकल जाने पर रामचंद्रराव ने, अपनी स्वामिनी की अन्तिम सूचना के अनुसार, शत्रु की आँख बचा कर, घास का ढेर लगा दिया; असी चिता पर लिटा दिया और पराधीनता के घृणित स्पर्श से अन की लाश भी अपवित्र न हो मिस लिओ आग जला कर रानी का अमिसंस्कार किया। सिहासनपर नहीं, चितापर सही। किन्तु लक्ष्मी के गले में प्यारी स्वतं. बता की कौस्तुभमणि अब भी विराजमान है। रणमैदान म मरकर मृत्यू के 'द्वार रानी ने तोड दिये हैं और दूसरे लोक म स्वच्छंदता से संचार कर रही है। अब असका पीछा मानव क्या कर सकता है। और करे तो रानी की कोभी हानि न होगी। दुष्ट यदि पीछा करे तो असे धधकती नरकामिमें जाना पडेगा। ' जिस प्रकार रानी लक्ष्मीबासी लडीं। अपना मन्तव्य पूरा कर गयीं; आकाक्षा सफल हुी, अपने निश्चय को निवाह सकीं। जैसा मेक जीवन सारे राष्ट्र का मुख अज्वल करता है। सब सद्गुणोंका निचोड वह थीं। ओके महिला, अभी २३ धूपक्राल भी निसने न देखे हों; गुलाब के समान सुकोमल, मधुर बरताव, विशुद्ध चरित्र पुरुषों में भी न पायी जानेवाली अपने लोगों को संगठित करने की शक्ति अन में थी। रानी के हृदय में देशभाक्त की ज्योति सदा प्रकाशमान थी । भारत देश के लिये अन्हें गर्व था। और युद्ध में अद्वितीय थीं। संसार में शायद ही कोजी राष्ट्र, जैसे दैवी गुणों से युक्त व्यक्ति को, अपनी कन्या और रानी कहलाने का अधिकारी होगा। अिग्लैड के भाग्य में यह सम्मान अबतक नहीं बदा है। अिटली की क्रांति में अच्च आदर्श तथा अच्चतम वीरता का परिचय मिलता है, फिर भी जितने वैभवपूर्ण समय में भी अिटली अक लक्ष्मी को न अपजा पायी।