पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५१७

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अस्थायी शान्ति ___“मिन हनारे देश में विदेशी फिरंगी -तुम यहाँ के शासक और हम चार ठहर गया :" नानासाहता के यही अन्तिम गद भितिहास में उभिन है बाजीराव (२रा) के रण तग दुर्वल कार्यशाल का, पेशवा के गीपर लगा धमा, अर रक्त के लौने बहाकर कर धो डाला गया है, जिस से चित्तोड की अन राजपन- नियों के गमान वह गदी लडने लदने ग्यात ग-यक्ष की बाला में रवाना हो गयी। -और जिस तरह अब तक कता हुआ वाला- मखी का मुख फिर क ार क गण। हरियाली फिर मे धुम मह पर जम गयी । सर्वम् शान्ति, सुरक्षा और परस्पर सुहृद-भाव का साम्राज्य फैल गया। । किन्तु, जिस ज्वालामुरली की सत्तहपर भले ही सब कुछ है। - नयन-मनोहर तथा मृदु-मधुर भासमान होता हो, हा अन की अित्ती सतह के नीचे भीपण ओर भडकनेवाला ज्वालामुखी सोया पड़ा हुआ है----सिम का तनिक भी को भान किसी को है ? EETTARATARAPARIATRITTENTINEN ERACT