पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५२३

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उसे सुन कर ३१ जुलाइ १८५७ ही को कुसमय,बलवा कर दिया। उन्हों ने उनके कुछ अधिकारियों को मार डाला, स्वजाने पर कब्जा कर लिया,अभी पहुँचे गोरे सैनिको से भिडन्त की और महाराष्ट्र के घाटियों की ओर चल दिया। भिन्न भिन्न क्रांतिकारी दस्ते सावंतवाडी के रामजी शिरसाट के नेतृत्व में इकट्टे हुए और कडी के जगल के रास्ते में गोरी सेना को सतान लगे। गोधे के पुतुगालियों के सहयोग से अंग्रेजों ने, कुछ महीनों के बाद, उन्हे हरा दिया और तितर बितर कर दिया। कोल्हापुर में आये नये अंग्रेज अफसर जेकबने शेष सिपाहियों से हथियार डलवा लिये और उन के नेताओं को गोलियों से उडा दिया।

           किन्तु कोल्हापुर के  सिपाहियों ने बलवा किया, तो भी वहॉ की जनता राह देखती चुप रही।बीचमें कानपुर के नानासाहब के दूत की कोल्हापुर के युवक नरेश के साथ मंत्रणा हुई; उसको राष्ट्रीय क्रांति में हाथ बॉटाने के लिए उकसाया; लखनऊ के दरबार की ओर से एक तलवार भी कोल्हापुर नरेश को भेंट की गयी। उसी तरह सांगली,जमखिंडी तथा अन्य दक्षिणी संस्थानो से भी गुप्त लिखापढी हो रही थी। किन्तु कोल्हापुर के महाराजा से अधिक गाढा शिवाजी का रक्त उस के छोटे भाइ माई चिमणासाहब की नसों में था। अब तक बने बनावों से बिगडें हुए माई क्रातिकारी कार्यक्रम को फिर से क्रार्यान्वित करने के लिये गुप्त मत्रणाएं उस ने शुरु कीं। उस ने कोल्हापुर के अस्थायी सिपाहियों तथा स्वयंसेवको का सगठन बलवे के लिये बनाया और १५ दिसंबर के तडके कोल्हापुर ने फिर से विद्रोह किया। नगर के द्वार बद कर दिये, तोपों को ठिकाने लगान गया और नगर के मागाँ में क्रांति का डका बजाया गया। जोकब को सवाद मिलतेही उसने अपनी सेना को जमा कर एक कच्चे द्वार पर हमला किया। तब से अग्रेजीं सेना के राजमहल पर कब्जा जमाने तक भीषण मुठभेडें होती रहीं। हार हूने पर, जैसा कि होता रहा है,राजाने घोषणा की कि किलवा सैनिकों ने तथा, राजाज्ञा का भंग कर, जनता ने शुरु किया था। जब विद्रोहियों के नेताओं के नाम तलब किये गये तो राजाने बताया कि वह