पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५२६

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अस्थायी शान्ति ] ४८२ [चौथा खंड घर में सिपाहियों की गुप्त बैठकें हुआ करती थीं। कुछ डॉटडपट के बलपर वह गंगाप्रसाद के घरमें घुस गया और एक दिवार की ओटमें बैठ सेक छेद द्वारा क्रांतिकारियों की पूरी बैठक देख ली, जिसकी कानोकान भी खबर अन्हें न मिलने पायी । और तो और, कुछ अंग्रेज अधिकारियों को वहाँतक ले जाकर अस ने सब कुछ बता दिया ! जब अंग्रेजोंने देखा, कि जिनपर अन्हे संपूर्ण विश्वास था वही भीमानदार और 'राजनिष्ठ' सिपाही मेक सेक कर के अस बैठक में आ रहे हैं, तब दाँतोंतले अगुली दवाकर वे कानाफूसी करने लगे "है! बापरे ! ये तो हमारे ही सिपाही ! यह कैसे हुआ ? " सिपाहियों की योजना का स्वरूप साधारणतया यों था । पहले बम्बी में बलवा हो, फिर पुणे पर चढानी कर असपर दखल किया जाय, वहाँ मराठा साम्राज्य का झण्डा 'जरीपटका' फहराया जाय और नानासाइब को पेशवा घोषित किया जाय । * किन्तु शिसपर अमल होने के पहले ही फॉरेस्ट ने भंडा फोड कर दिय और दो प्रमुख क्रांति. कारियों को फॉसीपर लटका दिया; तथा छः नेताओं को सीमापार जाने का दण्ड दिया। जिस तरह बम्वी का बलवा मूलनः रौंध डाला गया. । सिन्ही दिनों नागपुर तथा जबलपूर में क्रांति की चिनगारियाँ चमकने की सम्भावना दीख पड़ी। १३ जून १८५७ को नागपुरने विद्रोह करने की ठानी थी; गिस योजना का समर्थन समी प्रमुख नागरिकों ने भी किया था। निश्चय यह हुआ था, कि १३ जून की रात को गाँव के लोक तीन आकाशदिये जलाकर आकाश में चढा दें, जो सैनिकों के अठने की सूचना समझी जायगी। और अक बात क्रांतिकारियों के हित में थी, कि नागपूर जबलपूर के टापुमें अक भी गोरी पलटन अंग्रेज न राख पाये थे। किन्तु थोडे ही समय में मद्रास से भारतीय पलटन आयी, जिससे बलवे की आग तुरन्त बुझा दी गयी । जबलपूर का गोंड राजा शंकरसिंह क्राति के लिअ तन मन से चेष्टा कर रहा था। असे पकडकर असके राजमहल की तलाशी लेने पर रेशमी बस्ते में लपेटा हुआ अंक कागज मिला, जिसपर प्रतिदिन रटने का प्रातःस्मरण लिखा हुवा था। वह

  • फॉरेस्ट कृत रियल डेंजर अिन सिंडिया

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