पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५३०

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के गाल में जाने को सिद्ध बना मैं , अपने नेताओं के नाम बताऊँ ? तोप ; फाँसी या कालापानी कोइ भी दण्ड मुझे देशद्रोह से भयंकर मालूम नहीं होता ।" मेडोजने जब उसे बताया , कि तव तो उसे फॉसी ही दिया जायगा तब राजा ने कहा , 'अप्श , मै तुम से प्राथना करता हूँ ; मुझे फॉसी पर न लटकाओ; मैं कोई चोर या गेठकटा हूँ ? मुझे तोपसे उडा दो ; तुम देखोगे कि मैं कितनी निडरता तथा शान्तिसे तोप के सामने खडा हो जाऊँगा !"

इस स्वदेशभक्त राजा को पहले फॉसी का दणड सुनाया गया और फिर मेडोज टेलर के ह्स्तक्षेप से उसे फाँसी के बदले कुछ वर्षों तक कालेपानि कि सजा दी गयी । उसे जब अंडमान भेजा जाता था तव उसने जेल के वार्दर की पिस्तौल, आसपास किसी को न देख कर , छीन ली और स्वयं गोली खाकर गिर पडा। मरने के पह्ले वह कहा करता 'कालेपानी से मृत्यु ही अच्छी है । मेरा एक साधारण प्रहरी भी बंदिशाला में नही रहेगा, फिर मैं तो उन का राजा ! मैं बंदी कभी न रहूँगा ।"

किसी जोहरापुर के राजा के निकट का दूसरा व्यक्ति था नरगुंद के नरेश भास्करराव बाबासाहेव । किन्तु जब जोहरापुरने बलवा किया तव वहा उचित समय न जानकर नरगुंड नरेश चुप रहा । किन्तु जोहरापुर का खात्मा होने आया , तब नरगुंदवालों ने विद्रोह किया । इसी प्रकार के लचर और असामायिक अन्याय ही से दक्षिण में किसी को विजय न मिली । बाबासाह्ब समय तथा विध्याप्रेमी था । उत्तम से उत्तम ग्रंथों का एक संग्रहालय भी उसने बनाया था । उस की सुंदरी धर्मपत्नी साहसी थी । जब से उसे दत्तक पुत्र गोद में लेने की अनुज्ञा न मिली तब से उस ने फिरंगी का सत्यानाश करने का निश्चय किया था। उसी की प्रेरणा से, बडी झिझक के बाद , निदान २५ मेई १८५८ को नरगुंद ने फिरंगी के विरुद्ध शस्त्र उठाया। बाबासाह्ब ने ब्रिटिश राजसत्ता की पराधीनता का बोझ उतार फेंका । जब उन्हें पता चला

- मेडोज टेलर कृत स्टोरी ऑफ माय लाईफ