पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५३१

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कि अंग्रेज़ अफसर मॅन्सन उन पर चढ आ रहा हॅ , कुछ चुनिन्दे लोगों के साथ नरगुद के पास , एक रात ,जंगल में अुसे गाँठा ।मॅन्सन मारा गया तब अुसे का सिर काट कर नरगुंद को एक जलूस में लाया गया , दूसरे दिन सवेरे वह नरगुद के शहर द्वार पर टाँगा हुआ पाया गया । इधर बाबासाहब के सौतेले भाई ने क्रांतिकारियों से मिलने से अिन्कार् ही नही किया, बल्कि वह अंग्रेजो के पास गया । अंग्रेज सेना नरगुंद पर चढ गयी और वहाँ के क्रा।तिकारियों की हार हुई; किन्तु बाबासाहब उस समय शत्रु के हाथों से छटक गये । आगे चल कर गुप्तरुप से घूमते हुए पकडे जाने पर १२ जून कू उन्हें फाँसी दी गयी । उन की नौजवान , सुंदरी तथा साहसी रानी अंग्रेजों को ठुकरा कर अपनी सास के साथ मलप्रभा नदी में डूब मरी। अलावा अिस के , कोमलदुग॔ का भिमराव , खानदेश के भिन्न तथा अुनकी युद्द्धको कटिबद्ध धनुष्यघारिणी औरतें और अन्य टोलियाँ महारष्ट्रमें कम - अधिक मात्रा में बलवे की चेष्टाअे करती रहीं । नासिक के पास त्र्यंबकेश्वेर के दिवान जोगलेकरने बलवे कर अपना किला लडाया, किन्तु अुन की हार के बाद पकडे जाने पर अंग्रेज़ो ने अुन्हें फाँसीपर लटकाया । दक्षिण में अिस तरह छोटी मोटी हलचलें हुइ । किन्तु पुरी सिद्धता के अभाव में विद्रोह का ठीक मौका ढूँढने की चतुरना की कमी से तथा जो बलवे हुए वे असमय, अंकाकी असगठीत मनोबल के आधारपर होने से दक्षिण अग्रेज़ो को बहुत कष्टदायी न हुआ , जिस से ये अपनी पूरी शक्ति का प्र्योग उत्तरभारत में कर सके ।

द्क्षिण की ह्ल्च्न्लों का सरसरी दृष्टि से अिस प्रकार निरीक्षण किया । अब फिर हमें तडपते , कराढते मानी अजध की ओर ध्यान देना चाहिए । मौलवी अहमदशाह के वीरचरित्र का अन्तिम जवलोकन करते हुअे अवध का कथासूत्र अधूरा छोड दिया गया हॅ । मॉलवी जॅसे असाधारण वीर की मृत्यु भी अुस के जीवन की तरह वॅभवशाली होती हॅ । दुसरे कअी जन मॅदान में लडते हुए मारे जा कर स्वर्ग सिधारते होंगे , किन्तु जिन के , ह्र्दय में देशप्रेम की आगे