पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५३२

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धधकती हैं। अुसे शान्त करने के लिये 'रक्त, रक्त,' कहकर रणभूमी पर तांडव करते हुए जो अपने जौहर दिखाते है अुन्हे वास्तव में मृत्यु मार ही नहीं सकती। जैसे रणयोद्धा प्रतिशोध की प्यास पूरी बुझने के पूर्व खेत रह जायँ तो वे जमराज के अधीन नहीं होते। देखा गया है,कि जैसे वीर का सिर तनसे अलग हो जाय तो उस का कबघडी् समरागणमें लडता है। और यह मान्यता लोगो में प्रचलित है,कि अुस कबंध के टुकडे करनेपर भी अुस वीर का अदृश्य भूत रात में शत्रु की छातीपर चढकर प्रतिशोध लेता है। अिस मान्यता की जड में कुछ तत्व अवश्य होता है। मौलवी अहमदशाह जब समरांगण में झूझ रहा था,तब लॉर्ड कॉँमिंग ने अवध प्रातं के लिए एक घोषणापत्र प्रकट किया था;'जो स्वयं हथियार डाल देंगे अुन्हे बागी न मानते हुए,पूर्व के अपराधोँ की दयापूर्वक क्षमा की जायगी; और आज जो हमारा साथ दे रहे है अुन की जागीरें और अधिकार लौटा दिये जायेंगे। विद्रोह के दबाने में अब ब्रिटिश शासन को पूरी सफलता प्राप्त है। ध्यान रहे, अब भी कोअी ब्रिटिश शासन का विरोध करने पर डटे रहेंगे तो अुन की इस अुद्दण्डता के लिये उन्हे भयंकर दण्ड दिया जायगा।" अंग्रेजों को विश्वास था,कि इस घोषणा के बाद तथा बडे बडे नेताओं की एक एक कर के रण मे मृत्यु होने के बाद अवध में'सब ठीक'हो जायगा। इस के साथ अवध की साढेसाती मे कोढ की तरह यह संवाद मिला,कि'पोवेन के नीच राजा ने ५जून १८५८ को लोगों के आदरपात्र मौलवी का सिर काट लिया है। किन्तु अतिमानुष प्रयत्नों की पराकाष्ठा कर थका हुआ, पराजय से पस्त और शरण लेने के लिअे जिसे क्षमा के लालच के मोह में फसाया जा रहा था-वह अवध, मौलवी की मौत पर स्यापा रोने के बदले, भूत का संचार होने की तरह, 'प्रतिशोध'के नारे लगाते हुअे खूनखराबी मे फिर कूद पडा। नीच शत्रु ने मौलवी का सिर नगर के तोरण पर लटकाया किन्तु अुस का कबंध मैदान में अंग्रेजों को सताने लगा। मौलवी की मौत से दबने के बदले समूचे अवध का यह भूत, अब बलाबल, यशापयश, आशा निराशा अेव जीने मरने की चिन्ता न करते हुए नये अुत्साह से शत्रु से भिडने के